कविता

अधूरे ख्वाब

सारे अधूरे ख्वाब
सपनीले राजकुमार के
जो आएगा
एक दिन मेरी जिन्दगी मेँ
बंद कर दिया है
मैने उसे,
उसी बक्से मेँ,
जिसमेँ अम्मा ने संजोए थे
अपने ख्वाब . . .

जब भी लिखेगी
अम्मा,
मेरे गीत ब्याह के
मैँ गुनगुना लुंगी
अपनी लाज,
अपने उड़ते परवाज को
लगाकर पंख
भरुंगी एक उड़ान
अपनी मर्जी के . . .

अम्मा
मैँ जी लेना चाहती हूँ
और,
जीने के लिए
मेरा ब्याह हो
यह जरूरी तो नहीँ . . .

— सीमा संगसार

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- sangsar.seema777@gmail.com आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

3 thoughts on “अधूरे ख्वाब

  • इंतज़ार, सिडनी

    सीमा जी बहुत सुन्दर… और सवाल भी सही है …..

  • Man Mohan Kumar Arya

    कविता पढ़ी। कुछ कुछ भाव समझ पाया। कविता के विषय और उसके भावों ने ह्रदय को छू लिया है। बधाई।

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