एक दीवाने की मौत
पूरा गांव उन्हें दीवाना, वहशी और पागल कहता था। पर न जाने क्यों मेरा मन कहता था युसूफ चच्चा ऐसे नहीं हैं। उनकी उन दो हरकतों जिनकी वजह से गांव वालो ने उन्हें पीटा था उसके बाद भी मेरा मन उनके बारे में गांव वालो की तरह धारणा नहीं बना सका।
पहली बार गांव वालो ने उन्हें इसलिए बेदर्दी से पीट दिया जब उन्होंने भाग कर मज़ार पर चढ़ाई जा रही चादर को लेकर उसे उस भिखारिन को उढ़ा दिया जो दिसंबर के महीने में बरगद के नीचे ठण्ड से ठिठुर रही थी। मज़ार पर वो चादर क्षेत्रीय विधायक चढ़ाने आया था और वो विधायक असलम शेख अपनी जलती आँखों के आगे युसूफ चच्चा को पीटते हुए देखता रहा।
दूसरी बार युसूफ चच्चा की पिटाई तब मैने देखी जब उन्होंने उस भिखारिन को मंदिर में चढ़ाया जाने वाला दूध एक बिरहमन के हाथ से छीन कर पिला दिया। इसका परिणाम यह हुआ गांव वालो ने युसूफ चच्चा के उस भिखारिन के साथ अवैध सम्बन्ध की चर्चा करने लगे।
आज भी शायद युसूफ चच्चा की गांव वालो ने किसी बात पे पिटाई की होगी। उनकी लाश पड़ी हुई थी। पूरा गांव तमाशबीन था। पर आज मे तमाशा नहीं देख सकता था। युसूफ चच्चा को सम्मान सहित दफ़नाने से पहले मेरे कदम पुलिस स्टेसन की तरफ उठ चले थे।
–सुधीर मौर्य
मार्मिक लघु कथा ! इसका शीर्षक “एक सच्चे मानव की मौत” होता तो अधिक सार्थक होता.
हाँ सर आप उचित कह रहे है।