बालगीत – “अपना बचपन अपनी दुनिया”
किसी की टॉफी कोई छीने
किसी की चोटी कोई खींचे ,
हँसता मुन्ना , रोती मुनिया
अपना बचपन अपनी दुनिया |
अटक – अटक कर रटे ककहरा
समझ नही आता अलजबरा ,
लिये हाथ मे पटरी – गुनिया
अपना बचपन अपनी दुनिया |
कभी तो रोते , कभी हैं गाते
बात – बात हँसते – मुस्काते ,
बजा रहे बैठे झुनझुनिया ,
अपना बचपन अपनी दुनिया |
अच्छी बाल कविता ! बचपन की दुनिया ही निराली होती है.
बचपन में खो गिया भाई !