क्षणिकाएँ
अभिलाषाएँ !!
पतंग सी उड़ती
चीरती मन क्षितिज
गिरती पड़ती
मरती न कभी
नित नए रूप में
धरना दिए बैठती
रहे सदैव अपूर्ण
पूर्णता को व्याकुल
अतृप्त अभिलाषाएँ
धूप !!
जो थी व्याकुल
झरोखे दे दस्तक
झिर्रियों से झाँकती
ख़ामोश सी
भित्ति से टकराव
खुद ब खुद
राह बदल, मिलता
तो क्या ? बस
अस्तित्वहीनता ।
कविता !!
मन के भाव
करुणा अभिव्यक्ति
प्रेम अलगाव
क्षणिक पल
शब्दों की धार
बिखरते पन्ने
अनुभूतियों
की अभिव्यक्ति
अहसास की स्याही
सृजन क्षणिक
कविता बन जाती
मन आधार ।
many many thnx to all of u fr motivts me 🙂
badhiyaa
अभिलाषाएं बहुत सुन्दर लगीं , गुंजन जी.
बहुत खूब !