बेटी पैदा करने की इच्छा रखने की सजा
आज कल्पना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था , वह किसी छोटे बच्चे की तरह पुरे घर में उछलती फिर रही थी । वह कभी किचन में देखती की उसकी मम्मी और दीदी क्या बना रही हैं तो कभी ड्राइंग हाल की चीजो को फिर से सजाने लगती ।
कल्पना दो बहने थी , बड़ी बहन सीमा जो की डेंटिस्ट थी उसका पति पेशे से अध्यापक , उनका एक तीन साल का बेटा था।
कल्पना MA कर चुकी थी और अब एक कम्पनी में नौकरी करती थी । कालेज के दिनों में ही उसकी मुलाकात सुरेश से हुई , फिर यह मुलाकात कब प्यार में बदल गई कल्पना को पता भी न चला । सुरेश भी एक कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर था , दोनों का प्यार जब परवान चढ़ा तो दोनों ने शादी करने का निश्चय किया ।
कल्पना का परिवार मूल रूप से पंजाब का था पर कई वर्षो से उसके पिता जी परिवार के साथ दिल्ली में ही रह रहे थे , यंहा पर उनका फर्नीचर का व्यवसाय था । अपनी दोनों लडकियों को उन्होंने बड़े लाड प्यार से पाला था और उनके फैसलों में बहुत कम इन्टरफेयर करते थे । जब कल्पना ने सुरेश से शादी करने का फैसला सुनाया तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुई ।
सुरेश हरियाणा का रहेनेवाला था , उसका परिवार वन्ही रहता था , उसके पिता गाँव के सरपंच थे और सम्पन्न थे । सुरेश ने दिल्ली के निकट फरीदाबाद में अपना फ्लेट लिया हुआ था ।
आज सुरेश अपने परिवार के साथ कल्पना के घर अपनी और उसकी शादी पक्की करने आ रहा था ।
तभी डोरबैल बजी , कल्पना के पिता जी वीरेंद्र जी ने दरवाजा खोला । सामने सुरेश अपने माता- पिता के साथ खड़ा था । दोनों तरफ से अभिवादन हुआ और सभी लोग भीतर आ गए । ड्राइंग हाल में सब लोग बैठ गए , वीरेंद्र जी ने कल्पना, बड़ी बेटी और पत्नी से सुरेश के माता पिता का परिचय करवाया । सारी औपचारिकता पूरी होने के बाद दोनों तरफ से बात पक्की हो गई और अगले महीने शादी की तारीख भी पक्की हो गई ।
अगले महीने निश्चित तारिख पर कल्पना और सुरेश का विवाह बड़े धूम धाम से हुआ , कल्पना विदा होके सुरेश के नये फ्लेट फरीदाबाद में रहने लगी । दिन हंसी ख़ुशी से बीत रहे थे , एक दिन कल्पना ने सुरेश को खुशखबरी सुनाई की वह माँ बनने वाली है । चुकी सुरेश और कल्पना फ्लेट में अकेले रहते थे इस कारण कल्पना की देखभाल करने में परेशानी हो रही थी । जब सुरेश के परिवार वालो को यह बात पता चली तो उन्होंने सुरेश से कल्पना को गाँव छोड़ जाने को कहा ताकि उसकी देखभाल हो सके । इस बात पर कल्पना और सुरेश दोनों राजी हो गए ,कल्पना ने सोचा इस बहाने उसे सुरेश के परिवारवालों के साथ रहने का मौका मिल जायेगा वह माँ बनने के और अपने आने वाले बच्चे के बारे में हजारो ख्वाब लिए कल्पना सुरेश के गाँव में आ गई ।
परिवार वाले उसकी देखभाल करने लगे, रहने के लिए उसको उपरी मंजिल का कमरा मिल गया । कल्पना जब भी गाँव में घूमने निकलती उसे एक चीज बड़ी आजीब लगती की उस गाँव में कोई छोटी बच्ची उसे नहीं दिखती , पर वह इस बात को इग्नोर कर देती । गाँव की महिलाये भी उसे बड़ी अजीब लगती अधिकतर महिलाये हरियाणा राज्य के बहार की थी ।
एक दिन सुबह सुबह सुरेश के पिता जी ने कल्पना से कहा की वे तैयार हो जाए उसे डाक्टर के पास चैकअप के लिए ले जाना है , कल्पना तैयार हो गई । गाडी खुद सुरेश के पिता जी चला के ले जा रहे थे ,कल्पना के साथ उसकी सास थी । थोड़ी देर मे वे एक क्लिनिक के बाहर खड़े थे , कल्पना और उसकी सास बहार ही खड़े रहे । अन्दर जाने पर सुरेश के पिता ने डाक्टर से कुछ बात की , डाक्टर उनकी बातो से सहमती से सर हिलाने लगा । फिर सुरेश के पिता बाहर आये और कल्पना की सास को कुछ इसरा किया , उसकी सास इशारा पा के कल्पना को डाक्टर के कमरे में ले गई।
डाक्टर कल्पना को एक कमरे में ले गया जंहा बड़ी बड़ी मशीने लगी थी ।
डाक्टर ने कल्पना का अल्ट्रासाउन्ड किया और कल्पना को जाने को कहा ,कल्पना ने कुछ पूछना चहा पर डाक्टर ने उससे कहा की वह अपने ससुर को उसके पास भेज दे ।
कल्पना के जाने के बाद जब सुरेश के पिता डाक्टर के कमरे मे आये और डाक्टर ने उन्हें रिपोर्ट दिखाते हुए कुछ कहा जिससे उनके चेहरे पर परेशानी झलकने लगी । फिर कुछ बात करके और पैसे देके वह कमरे से बाहर आये और घर चलने के लिए कहा । कल्पना पूछा की सब ठीक तो है न? पर सुरेश के पिता ने उसकी बात का कोई जबाब नहीं दिया और सीधा गाडी चला के घर आ गए। कल्पना के मन में तरह तरह की शंकाए उठने लगी थी अपने होने वाले बच्चे को लेके पर जितनी बार भी वह पूछती सुरेश के पिता जी कुछ नहीं कहते।
रात में जब कल्पना सोने जा रही थी तो उसकी सास उसके कमरे में आई और उसके सिराहने बैठ गई। कल्पना ने जब पूछा की सब खैरियत तो है न तो वह बोली ‘ कल्पना तुझे अपना गर्भपात करवना होगा’ । पहली बार यह बात सुन के कल्पना को समझ ही नहीं आया की उसकी सास कहना क्या चाहती है! फिर उसने दुबारा पूछा तो उसकी सास ने सख्त लहजे में उससे कहा की उसके पेट में लड़की है और उसे इसका गर्भपात करवाना पड़ेगा ।
उसकी सास ने आगे कहना जारी रखा ‘ इस गाँव में लडकिय पैदा नहीं होती ,इस गाँव में जो लड़की पैदा करता है उसे सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता पिछले कई सालो से इस गाँव में एक भी लड़की पैदा नहीं हुई ।
फिर तेरे ससुर तो सरपंच हैं उनकी क्या इज्जत रह जाएगी , तुझे यह फैसला मानना ही होगा।
कल्पना की सास बोले जा रही थी ,पर कल्पना मनो मूर्ति हो गई थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । जब उसकी सास की बात ख़त्म हुई तो उसे होश सा आया और उसने चीखते हुए कहा की वह अपनी बच्ची को हर हाल में पैदा करेगी उसे गर्भपात नहीं करवाना।
उसकी बात पूरी होने से पहले उसके मुंह पर जोरदार तमाचा उसकी सास ने जड़ दिया , उसके होठ फट गए और उससे खून निकलने लगा । अपनी सास की यह हरकत देख कर उसके आस्चर्य का ठिकाना न रहा । वह कुछ बोल पाती की इससे पहले उसकी सास ने उसके बाल पकड़ के खीचते हुए कहा की ” तुझे इस लड़की को गिरना ही होगा चाहे हंस के या रो के ” । इतना कह के उसकी सास तेजी से कमरे से बाहर आ गई और बहार से दरवाजे की कुण्डी लगा दी ।
कल्पना के होठो से अब भी खून बह रहा था , फिर भी उसने बिना उसकी परवाह किये फ़ौरन सिरहाने से फोन उठाया और रमेश को मिला दिया ।
रमेश ने दूसरी तरफ से फोन उठाया तो कल्पना ने सारी बात रोते हुए बताई उसे यकीन था की रमेश जब यह सुनेगा तो अपने परिवार वालो की इस हरकत पर बहुत गुस्सा होगा । पर रमेश एक दम से खामोश रहा ,उसने धीरे से कल्पना से कहा ” कल्पना जैसा पिता जी और माँ कह रहे हैं वैसा कर लो ,उसमे कोई बुराई नहीं यह हमारे परिवार की इज्जत की बात है , अगला बच्चा हमारा लड़का ही होगा तुम यकीं करो फिर तुम्हे ऐसा करने की जरुरत नहीं रहेगी । पर अभी माँ जैसा कह रही है वैसा ही करो ”
इतना कह के रमेश ने उधर से फोन काट दिया , कल्पना के दम सन्न..धडाम से फर्श पर गिर पड़ी।
तभी दरवाजा फिर खुला और उसकी सास दाखिल हुई , उसने कल्पना के हाथ से फोन छीन लिया और बहार चली गई …. दरवाजा फिर बंद।
कल्पना के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे , वह सारी रात रोती रही जी चाह रहा था की फोन कर के पापा को बुला ले पर अब उसके पास फोन भी नहीं था ।
सुबह दरवाजा खुला और उसकी सास ने अन्दर आते हुए कहा की जल्दी से तैयार हो जाये डाक्टर के पास ‘सफाई’ करवाने जाना है । पर कल्पना ने साफ़ मना कर दिया और वैसे ही बैठी वह अब भी रोई जा रही थी .. उसने रोते हुए कहा की उसे अपने मम्मी पापा से बात करनी है । सास ने डांटते हुए कहा की अब तेरे मम्मी पापा हम ही हैं और तुझे हमारा ही कहना मानना पड़ेगा और जबरजस्ती उसको फर्श से खीचने लगी । अब कल्पना को गुस्सा आ गया था उसने आव देखा न ताव सास के हाथ पर जोर से काट लिया । सास दर्द से बिलबिला उठी उसकी चीख सुन के सुरेश का पिता कमरे के अन्दर भागता हुआ आया । जब उसने देखा की कल्पना उसकी पत्नी के हाथ में काट रही है तो उसने कल्पना को जोर से चांटा मार और पूरी ताकत से धक्का दिया । धक्का इतना जोर से था की कल्पना संभल नहीं पाई और लडखडाती हुई पेट के बल पलंग के किनारे पर गिरी । कल्पना के मुंह से हिर्दय को चीरने वाली चीख निकल गई वह वापस फर्श पर सर के बल गिरी । गिरते ही उसका सर फर्श पर टकराया और फट गया , सर से रक्त की तेज धार निकली । थोड़ी देर तडपने के बाद कल्पना का शरीर शांत हो गया।
सुरेश के माँ बाप को जैसे लगा की कल्पना मर चुकी है तो उन्हें पकडे जाने का भय सताने लगा , सुरेश के पिता ने फ़ौरन कल्पना के शरीर को उठाया और उसे लेके सीढ़ियो से नीचे उतर आया । उसने कल्पना के शरीर को इस तरह रख दिया की ऐसा लगे की कल्पना सीढ़ियो से गिरी है । कल्पना की सास ने इधर कल्पना के कमरे से खून के दाग के निशान मिटा दिया , उसके बाद घर में जंहा जंहा कल्पना का खून गिर था सब अच्छी तरह से धो दिया गया था सिवाय जंहा कल्पना की लाश पड़ी थी।
कल्पना की सास ने जानबूझ कर जोर जोर से रोना शुरू कर दिया था , सरपंच( सुरेश का पिता) ने डाक्टर को फोन कर दिया उसके थोड़ी देर बाद पुलिस को । डाक्टर ने पहले पहुच के यह रिपोर्ट बना दी थी की कल्पना की मौत सीढ़ियो से गिर कर ही हुई है । धीरे धीरे पडोसी इकट्ठे होने लगे थे पर किसी को भी यह शक नहीं हुआ की कल्पना की मृत्यु सीढ़ियो से गिर कर नहीं हुई थी, अगर शक हुआ भी तो किसी ने सरपंच के सामने यह कहने की जुर्रत नहीं की। पुलिस ने भी डाक्टर के रिपोर्ट पर मोहर लगा दी क्यों की उन्हें पता था की सरपंच की पहुच राज्य के मुख्यमंत्री तक है ।
तीन घंटे बाद सुरेश भी वंहा पहुच चुका था , जानबूझ कर कल्पना के घर वालो को कल्पना की मौत को देरी से बताया गया ताकि उन्हें पहुचने में अधिक से अधिक देरी हो । पर जब कल्पना की चिता को जलाने की तयारी हो रही थी तब तक कल्पना के परिवार वाले श्मशान घाट पर पहुच गए थे । आननफानन में चिता को आग लगा दी गई जिस कारण कल्पना के परिवारवाले कल्पना अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए ।
मित्रो यह कहानी मैंने आज के अख़बार में छपे उस खबर के आधार पर लिखी है जिसमें यह छापा गया है की हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के कई ऐसे गाँव हैं जंहा सालो से किसी के यंहा बेटी नहीं हुई । ऐसा इसलिए है की वंहा बेटी पैदा होना अपमान माना जाता है ,इसलिए वंहा बेटियों को पैदा होने से पहले ही हत्या कर दी जाती है। यंहा कन्याभूर्ण हत्या देश के किसी भी हिस्से से सबसे ज्यादा है।
यह कहनी कैसी लगी इस पर आप सबके सुझाव आमंत्रित हैं
-केशव
बहुत मार्मिक कहानी. आज भी भारत में ऐसे परिवार ही नहीं गाँव भी हैं, यह जानकार बहुत दुःख होता है. इस बुराई को समूल नष्ट करने की आवश्यकता है.
अच्छी प्रेनादाएक कहानी .
शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक। कहानी आज के आधुनिक समाज का विद्रूप चेहरे को प्रस्तुत करती है। कन्याओं के प्रति यह मानसिकता घोर निंदनीय एवं भर्त्सना के योग्य है। लड़की का विवाह करने से पूर्व ही कन्या के माता पिता को वर पक्ष से भविष्य में संभावित कन्या जन्म के बारे में उनके परिवार के विचार जान लेने चाहियें और जहाँ कन्या के जन्म को लेकर किंचित भी शंका हो वह कदापि कन्या का विवाह माता पिता को नहीं करना चाहिय।
आपका सुझाव बहुत अच्छा है. अगर माता-पिता विवाह से पहले ऐसी सावधानी रखें तो ऐसी घटनाओं में कमी आ सकती है.