उपन्यास : देवल देवी (कड़ी १६)
13. राजसी लूट
अल्लाह-हो-अकबर का नारा बुलंद करती मुस्लिम सेना तूफान की तरह महल में घुसी। सोलह वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों की तुरंत हत्या कर दी जाती। सोलह वर्ष से कम आयु के सारे लड़के कैद कर लिए जाते। बूढ़ी औरतों का भी कत्ल होता। बाकी स्त्रियाँ बेरहमी से पकड़ी गई। जिसने भी प्रतिरोध का प्रयास किया उसका तुरंत सबके सामने बेरहमी से बलात्कार किया गया। हर तरफ शव, पुरुषांग काट दिए गए। तड़पते हुए नवयुवक और राजमहल की गलियों में सुंदर कुमारियों के बलात्कार हो रहे रक्त स्त्राव से सने बदन का अंबार लग गया।
उलूग खाँ बेरहमी से बच्चों, युवकों को काटते हुए बोला ”बहादुरों ढूढ़ों रानी कमलावती और उसकी पुत्री को, ढूढ़कर तुरंत हिरासत में ले लो।“
तभी एक सैनिक आकर सूचना देता है। रानी अपने अंगरक्षकों के साथ राज्य का खजाना लेकर पीछे के मुख्य फाटक से भागने की कोशिश कर रही है। उलूग खाँ खुद घोड़े को ऐड़ लगाकर कुछ चुने हुए सैनिक लेकर महल के पृष्ठ भाग की तरफ लपकता है।
महल से एक-डेढ़ मील दूर उलूग खाँ ने भागती हुई महारानी के काफिले को घेरकर ललकारते हुए कहा ”ठहर जा बदवख्त काफिर औरत, किधर भागती है।“
इस समय रानी कमलावती हाथी के हौदे में बैठी थी, साथ में विशेष दासियाँ भी। रानी के अंगरक्षकों ने नाम-मात्र का विरोध किया। कुछ काट दिए गए। कुछ पकड़ लिए गए। कंचन सिंह बिना लड़े घोड़े को ऐड लगाकर भागा। उलूग खाँ ने इशारे से कुछ सैनिकों को भागते कंचन सिंह का पीछा करने को कहा।
उलूग खाँ हाथी के सामने घोड़ा लाकर आदेशात्मक स्वर में बोला, ”नीचे उतर काफिर औरत।“
”सम्मान से बात कर हम आन्हिलवाड़ की महारानी हैं।“ कमलावती ने हौदे से ही उत्तर दिया।
”महारानी थी, अब सुल्तान अलाउद्दीन की बांदी है। उनके कदमों की कनीज।“
रानी को बैठा देखकर उलूग खाँ ने कड़कती आवाज में कहा ”कमालुद्दीन नीचे उतारो इसे।“ आदेश पाकर कमालुद्दीन हाथी पर चढ़ गया, महावत ने विरोध किया तो उसका सर काट दिया। रानी कमलावती के बाल पकड़ कमालुद्दीन ने हाथी से खींचकर नीचे उतारा। असहाय रानी तड़पकर रह गई। तभी सैनिक, कंचन सिंह को जंजीरों से बाँधकर वापस ले आए।
सेनापति की पत्नी चंद्रावलि अपने प्यारे पति की वीरगति की खबर पाते ही गम खाकर गिर गई। महल में मची चीख-पुकार से उसकी तंद्रा टूटी। युवतियों के चीखने की कर्णभेदी आवाज से वह सुकुमारी दहल उठी। उसने तुरंत कर्तव्य निश्चित किया। कक्ष में अग्नि लगाकर बाह्य दरवाजा बंद कर लिया। वाह रे भारतीय वीरांगना! इस लौकिक संसार को छोड़कर वह अपने पति से भेंट करने उस पारलौकिक संसार को चल दी। उसकी कोमल देह धूँ-धूँ करके जल उठी। मुस्लिम सैनिकों को वहाँ उसकी राख ही मिली।
देवलदेवी और राय कर्ण देव को तुर्क लाख सिर पटकने पर भी प्राप्त न कर सके। हाय रे वह महलों की पली-पोसी वीर राजकुमारी राहों की धूल और आकाश की धूप झेलते अपने पिता के साथ देवगिरी की सीमा पर पहुँची। जहाँ उसका स्वागत
देवगिरी के युवराज शंकरदेव ने किया। यह एक धर्मनिष्ठ राजकुमार और एक वीर हृदया राजकुमारी की प्रथम भेंट थी।
नुसरत खाँ ने अब अपने सैनिकों को नगर लूट की खुली छूट प्रदान कर दी। कुछ घड़ी में समृद्धशाली पाटन नगर खंडहर में परिवर्तित हो गया। बच्चे, किशोर और युवतियाँ कैद कर लिए गए। बूढ़ों को बेरहमी से मार दिया गया। साहूकारों को लूटा गया। नुसरत खाँ को एक साहूकार की दुकान पर बेहद खूबसूरत युवक मिला। नुसरत ने उसे साहूकार से माँगा। साहूकार के इंकार पर उसका कत्ल करके उसे युवक को गुलाम बना लिया गया नाम मिला ‘काफूर’।
आन्हिलवाड़ की विजय और लूट पूरी हुई। सोमनाथ मूर्ति के टुकड़े, रानी कमलावती, दस हजार सोलह वर्षीय गुलाम युवतियाँ, काफूर और भंगी युवक सहित अस्सी हजार गुलाम, सत्तर हजार दिरहम के सोने के सिक्के, सात लाख मूल्य का सोना, चार सौ मन चाँदी और लूट की कीमती चीजे लेकर, नुसरत खाँ और उलूग खाँ सुल्तान की सेवा में दिल्ली पहुँचें। इससे पहले नुसरत खाँ ने सारा अन्हिलवाड़ को विभक्त करके तुर्की अफसरों में बाँट दिया और उनकी रक्षा के लिए सेना नियुक्त की।
मुस्लिम हमलावरों की सेनाओं ने हमेशा लोगों पर इसी तरह के अत्याचार किये हैं.
हाँ और हम फिर भी अधिकतर संगठित नहीं रहे।