वह पेड़ जो मेरा दोस्त है
बचपन से अब तक
बस मेरी बाते सुनता है
कहता कुछ नहीं
उसे पत्तियों से लदा देख कर खुश होता रहा हूँ
.पत्तियों से विहीन उसकी ..डालिया देखकर दुखी होता रहा हूँ
यह पेड़ मेरे बारे में सब कुछ जानता है
पर वह मेरी आलोचना नहीं करता है
उसकी पीठ पर कई बार मैं अपना नाम लिख चुका हूँ
उसकी छाया से बहुत बार घिर चुका हूँ
यह पेड़ मेरे जन्म से पहेले भी था
मेरी मृत्यु के बाद भी रहेगा
उसके तनों के बीच बने खोह के हृदय में
मेरा चेहरा छिपा रहेगा
जड़ो से फुनगी तक उसकी नसों में
मेरे लिये प्यार बहता रहेगा
किशोर कुमार खोरेन्द्र
किशोर भाई ! मेरा तो बचपन ही दरख्तों के बीच गुज़रा है और जानता हूँ जो दरख्तों से पियार है उस को वोह ही जानता है जिस को सही मानों में पियार हो . यह भावुक बातें तब ही हो सकती हैं अगर इस से लगाव हो .
ji
बहुत सुन्दर कविता, जो आपके प्रकृति प्रेम और पर्यावरण जागरूकता को प्रकट करती है. बधाई !
vijay ji shukriya