कविता

बावजूद इन सबके

कभी आईना मेरे सामने था

कभी दीवारे थी

कभी पत्थर थे

कभी सूना जंगल था

कभी घाटियाँ थी

कभी समुद्र थे ..लहरे थी

कभी भीड़ थी

सड़के थी

बावजूद इन सबके

इस यात्रा में मैं अकेला ही रह गया

चौराहों पर खड़ी हुई कुछ मूर्तियाँ मिली

कुछ महा वाक्य मिले

सीढियों से चड़ता गया

पगडंडियों से उतरता गया

कभी शिखर मिला तो कभी खाई मिली

कभी जुड़ता रहा कभी टूटता गया

इसी तरह

वक्त के हाथों की पकड़ से

धीरे धीरे छूटता गया

किशोर  कुमार खोरेन्द्र 

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “बावजूद इन सबके

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जीना इसी का नाम है , और कुछ नहीं.

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

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