यादेँ
ढलता सूरज भी बेबस है
तमस फैलाने को
यह डूबना ही
अंधकार को धकेलता है हमेँ
रात गहन होती जाती है
और हम लाचार होते जाते हैँ
यह अंधियारा
हमेँ जकड़ती रहती रहती है
कुछ यादेँ ऐसी ही होती हैँ
जिसे हमेँ जीना होता है
अंधेरोँ के साथ
सिवाय इंतजार के
कि वक्त बदलेगा
रात को बीत जाने देते हैँ
उन यादोँ के साथ ही
आँखेँ मूंदे
प्रार्थनाएँ करते
आखिर
इस रात की भी सुबह होगी
उजाला आएगा एक दिन
मेरे जीवन मेँ भी . . .
— सीमा संगसार
बहुत अच्छा!
भाव्हिनी कविता.
अच्छी कविता !