कविता

यादेँ

ढलता सूरज भी बेबस है
तमस फैलाने को
यह डूबना ही
अंधकार को धकेलता है हमेँ
रात गहन होती जाती है
और हम लाचार होते जाते हैँ
यह अंधियारा
हमेँ जकड़ती रहती रहती है
कुछ यादेँ ऐसी ही होती हैँ
जिसे हमेँ जीना होता है
अंधेरोँ के साथ
सिवाय इंतजार के
कि वक्त बदलेगा
रात को बीत जाने देते हैँ
उन यादोँ के साथ ही
आँखेँ मूंदे 
प्रार्थनाएँ करते
आखिर
इस रात की भी सुबह होगी
उजाला आएगा एक दिन
मेरे जीवन मेँ भी . . .

— सीमा संगसार

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

3 thoughts on “यादेँ

  • रमेश कुमार सिंह ♌

    बहुत अच्छा!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भाव्हिनी कविता.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

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