राजनीति

क्या कमल के लिए कीचड़ की कमी है ?

राजनीती को कीचड़ मानकर उससे दूर रहने वाले आज भी कई समाजसेवी इसपर कोई प्रतिक्रिया तक देना उचित नहीं समझते | क्यूँ की वो जमीनी हकीकत के मुकाबले राजनैतिक दावों की हकीकत को बखूबी समझते हैं !
यहाँ का अर्जुन जरुर ये दिखता है की उसका लक्ष्य पंछी की आँख है लेकिन तीर का निशाना हमेशा कही और होता है ! और द्रोणाचार्य की तरह हम अर्जुन की बातों पर यकीं कर लेते हैं | और फिर इसी धोखे में रहते हुवे अचानक कोई एकलव्य सामने आने पर अपनी साख बचाने के लिए उसका अंगूठा मांगने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं बचता ! इसीलिए देशभर में अपनी लहर के दम पर दिल्ली में भी जीत हासिल करने के दिल्ली के अर्जुन के दावे पर अब बी जे पी के द्रोणाचार्य ने भरोसा नहीं किया और उन्होंने खुद एकलव्य को ढूंड कर लाया और गांडीव उसके हाथ में थमा दिया !

अब इस एकलव्य ने , एकलव्य कौन यह तो आप समझ ही गए होंगे फिर भी बता दूँ किरण बेदीजी ! ही वो लेडी एकलव्य है जिन्होंने छुप चूप के बी जे पी के द्रोणाचार्य से ही शिक्षा लेने का आरोप अब लग रहा है और जिसका कोई खंडन भी बेदिजी नहीं कर रहीं हैं तो अब उन्हें बी जे पी का वह एकलव्य कहने में हमें भी कोई ऐतराज नहीं है ! फर्क बस इतना ही है की उनका अंगूठा काटने से पहले बी जे पी के द्रोणाचार्य उन्हें एक मौका जरुर दे रहे हैं जो की महाभारत के एकलव्य को नहीं मिला था !

इस पूरी तरह से राजनैतिक दांवपेच पर चुटकी लेकर मेरे लिए कांग्रेसी या आपिया होने के आरोप को झेलना मात्र मेरा उद्देश्य नहीं है | मेरा उद्देश्य है राजनीति को कीचड़ मानकर उससे दूर रहने वालों और ऐसे राजनीति से दुरी बनाए रखे लोगों से ही राजनीति के सुधरने की भोली उम्मीद पाले जनता की आस के साथ होनेवाले खिलवाड़ की गंभीरता को सामने लाना जिसे चुनावी धूमधाम में सहजता से नजरअंदाज किया जा रहा है | कोई इसके लिए बी जे पी के द्रोणाचार्य के दांव की तारीफ़ करते फुले नहीं समां रहा तो कोई इस एकलव्य के मोहरा बन जाने पर फब्तियां कस रहा है | कोई इस एकलव्य की जड़ें खोदकर पूर्व में वो क्या था उस आधार पर वर्तमान में उसका क्या बनना न बनना उचित होगा ये कह रहा है | कुल मिलाकर ये एकलव्य अब इन्ही सब राजनैतिक कसरतों के लायक बचा रह गया है और इसके अलावा अंत में जीते या हारे इसका अंगूठा काटना तो तय है ही !

दिल्ली में यही हाल करवाने बी जे पी में आई किरण बेदिजी के राजनीति में आने के निर्णय का पूर्ण सन्मान करते हुवे भी मैं उनसे जानना चाहूँगा की अपने जीवन के चालीस वर्षों की बेदाग़ तपस्या का श्रेय एक झटके में किसी पार्टी के झोली में डाल देने की ऐसी उनकी क्या मज़बूरी रही होगी ? जिस पार्टी का किरण बेदी को किरण बेदी बनाने में तील बराबर भी योगदान न हो ? और ऐसा भी नहीं की उस पार्टी से किरण जी अपने चालीस वर्षों के इतिहास में कभी इस कदर खुश रही हो की उनके लिए अपने इस्तमाल होने तक का उन्हें कोई ऐतराज न हो ! चलो पार्टी छोडो लेकिन आज जिनके नेतृत्व के कसीदे वे पढ़ रही है उनके नेतृत्व पर भी उन्होंने पूर्व में एक निष्पक्ष सामाजसेवी के विचारानुरूप सिर्फ और सिर्फ गंभीर सवाल ही खड़े किये है ! फिर ऐसा क्या हुवा की समाज के नजरों का एक बेदाग़ समाजसेवी राजनीति के लिए स्वय्माघोषित मोहरा बन गया ! हारे या जीते हर हाल में अंगूठा कटवाने को मजबूर एकलव्य बन गया ?

राजनीति को कीचड़ मानने वाले अब अन्ना हजारे ने खुद को बचा लिया इस बात की ख़ुशी मना रहे हैं ! क्यूँ ? क्या ये वास्तव में ख़ुशी मनाने की बात है ? की एक कीचड़ को साफ़ करने के लिए निकला इंसान कीचड़ में उतरने वालों का हश्र देख पीछे हट गया ?? ठीक है उनका और केजरीवाल ,किरण आदि का रास्ता कभी गैरराजनैतिक रहा होगा ! लेकिन क्या बिना झाड़ू के ,टीकम फावड़े आदि हथियारों के सफाई हो सकती है ?
गए वो जमाने जहाँ सिर्फ इस तरह के अनशन और आंदोलनों से कुछ सुधार होगा ! उलटे ऐसी किसी उम्मीद को नकारने वाला अन्ना का आन्दोलन अब सबसे अंतिम उदहारण होगा | तो ऐसी सूरत में एक समाजसेवी के लिए जो रास्ता बचता है वह है राजनीति में जाना , कीचड़ को साफ करने के लिए कीचड़ में उतरना इसको अन्ना ने नकार दिया ये ख़ुशी की बात है ? खुद किरण बेदी भी इस रास्ते को नकार चुकी थी ! लेकिन राजनीति में जाकर कजरी जो भी कर पाए वह कुछ न कर बाहर बैठ केवल तमाशा देखने से तो अच्छा ही है न ? इसीलिए अगर किरण बेदी ने राजनीति में प्रवेश किया , कीचड़ में उतरने का फैसला किया ये जरुर स्वागत योग्य कदम है इसमें कोई दोराय नहीं ! लेकिन जिस तरह से प्रवेश किया, जिस समय पर प्रवेश किया वह जरुर यह सवाल खड़ा कर रहा है की वें राजनीति में कीचड़ साफ करने के लिए उतरी हैं या सिर्फ एकाध कमल खिलाने उतरी हैं !

ऐसे आजीवन समाजसेवा करने और बेदाग़ रहने वाले भी राजनीती में आकर यही करेंगे तो यही सवाल उन तमाम उम्मीदपसंद लोगों के मन में आएगा की इन लोगों के आने से राजनीति में कीचड़ बढेगा या साफसुथरी राजनीति का कमल ?

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “क्या कमल के लिए कीचड़ की कमी है ?

  • विजय कुमार सिंघल

    आपका लेख अपनी जगह सही है. लेकिन राजनीति को मात्र कीचड मानना भी गलत है. इसमें कीचड इसलिए है कि अच्छे लोग इसमें आने से डरते हैं. अगर कर्मठ और ईमानदार लोग इसमें आयें, तो निश्चय ही कीचड कम होगी. मोदी जी और किरण बेदी जी ऐसे ही हैं. मोदी जी के आने के बाद ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार ख़त्म सा हो गया है, यह तो विरोधी भी मानते हैं. किरण जी के आने से दिल्ली को बहुत लाभ मिलेगा, यह तय है. दिल्ली कि जनता चाहेगी तो वही मुख्यमंत्री पद का दायित्व संभालेंगी.

Comments are closed.