क्षितिज बना रहें मेरे लिये वातायन
क्षितिज बना रहें मेरे लिये वातायन
तुम मेरे लिये हो
बस एक सपन
चाहता नहीं कभी भी
की उसका हो सचमुच में
मेरे यथार्थ की दुनियाँ में अवतरण
तुम यूँ ही मुस्कुराती रहो
उस पार ही रहो
क्षितिज बना रहें मेरे लिये वातायन
कभी सितारों की चमक सी लगों
कभी बिजली सो कौंध कर
कर जाया करों उज्जवल
मेरा तममय जीवन
तुम्हारी पोशाक की तरह
कहाँ हैं झीना तुम्हारा तन
जो पढ़ पाए तुम्हारे मन कों
मेरे विकल नयन
शब्दों की उँगलियों से
कहा छू पाउँगा तुम्हें
छंद तो हैं मेरे भरम
तुम्हारी गरिमा पर लाख हो जाऊ कुर्बान
पर तुम्हें पाने के लिये
मै जानता हूँ
लेना होगा
मुझे दूसरा जनम
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत खूब .
dhnyvaad
वाह वाह
thank u