गीत – बुलबुले
बुलबुले से क्यों हमारे
पल खुशी के हो गये
फूट जाते हैं अचानक
बिन किसी आवाज के
छोड़ते कोई निशां भी ना
कभी आगाज के
कुछ पता चलता नहीं
किस खोह में वो खो गये
देख पाते बस हवाओं में
उन्हें उड़ते हुए
है मना छूना भले रहना
पड़े कुढ़ते हुए
खीज में कईबार उनसे
मोड़ मुँह हम सो गये
रंग भी वैसे लिए जो
रंग कुछ पाते नहीं
मस्त हैं फरमाइशोंपर
पास में आते नहीं
खालीपन के बीज नये
हरबार जुल्मी बो गये
बहुत अच्छी कविता है.
बहुत सुंदर गीत ! ख़ुशियों के पल वास्तव में क्षणिक होते हैं या मालूम पड़ते हैं !