कविता

जीवन-समर

जीवन समर किधर जाना है,
कुछ उद्धार तो कर जाना है|
सीखें क्या सिखाएं क्या अब
मौन बहुत कुछ कर जाना है|

रचना है संसार निराला कुछ,
स्याही से कुछ कर जाना है|
खून का रंग लाल लाल है,
खूने जिगर तो बन जाना है|

रग रग में बहते जाना है,
मौन बहुत कुछ कर जाना है|

— मौन

4 thoughts on “जीवन-समर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह

    • मनोज 'मौन'

      सौरभ जी धन्यवाद

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