मन चाहता है……..
छुप-छुप छम- छम बरसा करती थीं जो अँखियाँ
कहती हैं मुझसे अब मुस्कुराने को मन चाहता है
कहती है सिसकती ज़िन्दगी
अब तो ख़ुशी का गीत गुनगुनाने का मन करता है
हुआ अजब यूँ ये नज़ारा है
कर बेठा मन यूँ खुद से बगावत
कैसे समझाएं इसे ख्वाब कोई हकीकत तो नहीं
रो तो जाती पल दो पल में ये दो अँखियाँ हैं
पर खिलती कहाँ यूँ
मुस्कान पल दो पल में है ||
छेड़ नहीं सकती यूँ
सरगम के गीत ज़िन्दगी चाहने भर से
कब ले करवट किस ओर
तकदीर की लहर ये कौन कहे
है कितना नादाँ ये दिल
कहता है एक बार किस्मत से लड़ जाने को मन करता है
एक बार अंधेरों से निकलकर सुनहरे उजियाले को छूने को मन करता है
उतार काँटों का कफ़न
फूलों की चादर ओढ़ने का मन करता है
हो चुकी रूलाईयां बहुत
अब तो ख़ुशी का गीत गुनगुनाने का मन करता है |
अब न रोयेंगे यूँ बार –बार
खुद से ये वादा करने को मन करता है
कहता यूँ दिल मुझसे है
एक बार आंसूओं से उभर-मुस्कुराने को मन करता है
एक बार आंसूओं से उभर-मुस्कुराने को मन करता है ||
~~~~मीनाक्षी सुकुमारन ~~~~
तहे दिल से बेहद शुक्रिया आपका गुरमेल सिंह जी
तहे दिल से बेहद बेहद शुक्रिया विजय जी
बहुत सुन्दर कविता है .
तहे दिल से बेहद सुक्रिया
वाह वाह ! बहुत सुन्दर !!
तहे दिल से बेहद बेहद शुक्रिया