संबंध विच्छेद
भरें हैं न्यायालय
खचाखच
भरे हैं महिला केंद्र
प्रयासरत हैं निरंतर
मध्यस्थता को तत्पर
बता रहे हैं सबको
अधिकारों की परिभाषा
कर्तव्यों की व्याख्या
मन का मन से सम्बन्ध
व्
संबंधों की पराकाष्ठा
लोग सुन रहे हैं
हिल रही हैं गर्दन
अनभिज्ञ मुद्रा में
यही चल रहा है निरंतर
लंबे समय से
दुर्भाग्य
फिर भी निरंतर हो रहे हैं तलाक
हो रहे हैं संबंध विच्छेद
विच्छेद
मन का मन से
तन का तन से
लाखों ‘चाहतों’ के बावजूद
किये जा रहे हैं विवश
स्वजनों द्वारा
और
अन्तरात्माओं में विराजमान
शिलारूपि हठ द्वारा
इतना विवश कि
प्रेम भी हो रहा शीला रूप
परिणाम स्वरुप
हो रहे निरंतर संबंध विच्छेद
विच्छेद मानवीयता का
विच्छेद आत्मीयता का
अहंकार का पलड़ा भारी है
संधि की दिखती नही बारी है
अवसर तो बहुत हैं मिलने मिलाने के
किन्तु अहम् ने बाज़ी मारी है
परिणामस्वरूप
हो रहे हैं संबंध विच्छेद
बेबस हैं न्यायालय
बेबस हैं प्रेम के पुजारी
बेबस हैं सभी शुभचिंतक
बेबस हैं वर वधु की
स्व महत्वाकांक्षाएं
टूट रहे हैं तिनका तिनका
जुड़ना चाहते हुए भी
और कर रहे हैं
सम्बन्ध विच्छेद
परिस्थितियां यह हैं की
जिस घर में
शाम ढलने पर
गूंजती थी आवाजें
हंसने और हसाने की
अगले दिन
सूर्योदय के बाद
आती हैं आवाजें
“तलाक तलाक तलाक”!!!!
दुनीआं में सब जगह यह ही हो रहा है , शाएद कम्पिऊतर युग की ही देण है , घर में कोई बोलता नहीं , बस अपना अपना लैप टॉप लिए बैठे हैं और अपने घर को छोड़ कर दुनीआं की सैर कर रहे हैं .
कठोर सत्य को व्यक्त करती हुई बेहतर कविता ।