सर्दी: दो मुक्तक
ठिठुरती इन हवाओं ने दिखाए रंग सर्दी के
सिसकती सी फिजाओं ने सिखाये ढंग सर्दी के
काँपती हैं घटायें भी सिहरते हैं सभी पंछी
सभी दिन रात भी अब तो हुए हैं संग सर्दी के
पेड़ों ने भी ओढ़ी है छालों की बड़ी कम्बल
कांपती है नदी ठंडी कांपते हैं सभी जंगल
किरनें भी ये सूरज की ठिठुरती हैं लगे ऐसा
मचा है इन हवाओं में कपाने का बड़ा दंगल
__सौरभ
बहुत अच्छा , मन लुभावने वाले अछे दिन भी जल्द आएँगे २६ जनवरी के बाद .
वाह वाह ! अच्छे मुक्तक !! सर्दी की विभीषिका का अच्छा वर्णन है ।