गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

दौरे मजहब को भुनाते रहिए।
खास जुमलों को सुनाते रहिए।।

बचे ना कोई अमन का फतबा।
सारे फतबों को डुबाते रहिए ।।

कोई दरख्वास्त हुकूमत से करे ।
फ़ख्र से उसको झुलाते रहिए।।

मयस्सर रोटियाँ कहाँ उनको ।
बस उम्मीदों को पिलाते रहिए ।।

पढ़ ना ले वो कहीं तेरी फ़ितरत।
इस तरक्की को रुलाते रहिए।।

हुनर है आग लगाने का अजब ।
तेज लपटों को बुझाते रहिए ।।

चैन की नीद ना सोये कोई ।
कुछ शिगूफों को उड़ाते रहिए।।

ये तो शतरंज की सियासत है।
चाल में खुद को उठाते रहिए।।

लुटी है राहतों की हर गठरी ।
हक गरीबो का चुराते रहिए।।

जुल्म बेपर्दा हो गया साहब ।
बैठ कर मुँह को छुपाते रहिए।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी ग़ज़ल है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर ग़ज़ल!

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