कविता : काश! कोई होता
दबा हुआ है मन में बहुत कुछ
बहुत कुछ कहना चाहते हैं ये लब
फिर कुछ सोचकर चुप हो जाते हैं
कहीं कुछ गलत न कह जायें
कहीं कोई रिश्ता दरक न जाये
कहीं लब खुले तो सैलाब न ले आए
काश ! कोई सुनने वाला होता
इस दिल की वीरानी को
समझता इस खामोशी को
मन में दबे हुए लफ्जों को
आँखों में सूखते अश्कों को
काश ! कोई होता …
बहुत अच्छी कविता है , सोचता हूँ यह ख़याल यूं कहने को कितने मुश्किल से लगते हैं लेकिन जब इन ही लफ़्ज़ों को कविता की चाशनी लग जाती है तो इन का कुछ मज़ा ही और हो जाता है.
niceeee