कविता

कुण्डलियाँ – भाग रही है जिंदगी


थोडा हँस लो जिंदगी , थोडा कर लो प्यार
समय चक्र थमता नहीं , दिन जीवन के चार
दिन जीवन के चार ,भरी काँटों से राहे
हिम्मत कभी न हार , मिलेगी सुख की बाहें
संयम मन में घोल , प्रेम से नाता जोड़ा
खुशिया चारो ओर , भरे घट थोडा थोडा

फैला है अब हर तरफ , धोखे का बाजार
अपनों ने भी खीच ली , नफरत की दीवार
नफरत की दीवार ,झुके है बूढ़े काँधे
टेडी मेढ़ी चाल , दुःख की गठरी बांधे
अहंकार का बीज ,करे मन को मटमैला
खोल ह्रदय के द्वार प्रेम जीवन में फैला .

भाग रही है जिंदगी, कैसी जग में दौड़
चैन यहाँ मिलता नहीं, मिलते अंधे मोड़
मिलते अंधे मोड़, वित्त की होवे माया
थोथे थोथे बोल, पराया लगता साया
जलती कुंठा आग, गुणों को त्याग रही है
कर्मो का सब खेल, जिंदगी भाग रही है

– शशि पुरवार –

2 thoughts on “कुण्डलियाँ – भाग रही है जिंदगी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछे विचार पेश किये गए हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कुण्डलियाँ. आपने जीवन की भागदौड़ को भली प्रकार व्यक्त किया है.

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