जीवन के जानिब
सच का सामना आसां तो नही
मौत का दामन सुर्ख सा
इंसान बेपरवाह फिर भी
अश्क के समन्दर में भी
खिलखिलाहट लिए फिरता है|
मौन दरखत पर
पंख फैलाए हुए परिन्दे
खोखले दरख्तों में
घर किये बैठे है|
जीवन की पहेली आसां सी
बस अपना डेरा दूर कहीं
बनाना तो सही
लोगों का जमघट लग जाएगे|
बहुत अच्छी कविता है.