कविता

जीवन के जानिब

सच का सामना आसां तो नही

मौत का दामन सुर्ख सा

इंसान बेपरवाह फिर भी

अश्क के समन्दर में भी

खिलखिलाहट लिए फिरता है|

मौन दरखत पर

पंख फैलाए हुए परिन्दे

खोखले दरख्तों में

घर किये बैठे है|

जीवन की पहेली आसां सी

बस अपना डेरा दूर कहीं

बनाना तो सही

लोगों का जमघट लग जाएगे|

 

One thought on “जीवन के जानिब

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता है.

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