तुम अदीम हो..
तुम अदीम हो फिर भी मेरे लिए प्रिय आश्ना हो
क्या कहूँगा मैं उस खुदा से जब तुम्हें मांगना हो
मैंने तसव्वुर में तेरी सुन्दर तस्वीर बनायी है
चेहरा उससे मिले चाहूंगा तेरी यही कामना हो
कांच के टुकड़ों सी आपस में सारी यादें जुड़ जाएं
अंतिम साँस लूँ तब प्रगट तुम जैसा आईना हो
तेरी इबादत करता हूँ इस बात से खुदा वाक़िफ़ है
तेरी बंदगी में मेरा सर झुके जब तुझसे सामना हो
तुम पावन बहती गंगा हो और मैं उसका किनारा हूँ
निष्पाप रहे सदा मेरा मन मुझमें न कोई वासना हो
कभी तुमसे मुलाकात हो मेरी यह मुमकिन नहीं है
दीदार करता हूँ हरदम तेरा पर तुम तो मृगतृष्णा हो
किशोर कुमार खोरेन्द्र
(अदीम =अप्राप्य , आश्ना =मित्र )
खूबसूरत ग़ज़ल.
shukriya
बहुत खुब
dhnyvaad
वाह वाह !
thankx a lot