“प्रेम …..”
रोज की तरह
वही मेरा पुराना सवाल
आखिर कितना प्रेम है तुम्हें मुझसे
और तुम्हारा फिर उसी तरह चिढ़ाना
जितना तुम्हें मुझसे है उससे थोड़ा सा ज्यादा !
वो थोड़ा सा ज्यादा
कितना सुकून दे जाता है मुझे
जानती हूँ तुमको चिढ़ होती है
बेतुके सवालों से .. तभी तो कहते हो
प्रेम में माप-तोल नहीं होता है
कम ज्यादा नहीं होता है बस प्रेम होता है !
प्रेम में तो बस होता है
समर्पण , अहसास , विश्वास
प्रेम की अपनी ही भाषा होती है
कहने सुनने से कहीं परे है इसकी बयानगी
प्रेम पर आपका वश नहीं चलता
बल्कि ये तो हमें अपने वश में कर लेता है पूर्णतया !!
प्रवीन मलिक
बहुत खूब .
अच्छी कविता !