माँ,वो अंगना, वो कंगना…
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
उठे तो वो चमके, झुके तो वो खनके
यूँ हलकी सी मुस्कान अधरों पे बनके
कभी सर पे फेरा तूने हाथ मेरे
कभी है लगाया गले से मुझे रे
पुराना वो अंगना माँ का वो कंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
सिरहाने सा बनकर सदा हाथ तेरा
रहा है हर एक पल में जो साथ तेरा
मैं सोता तो आँखों में सपने हैं पलते
मेरे रात और दिन सिहरते मचलते
तूने सिखाया है नींदों से जगना
पुराना वो अंगना माँ का वो कंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
जो जलता हूँ मैं तो कभी धूप में फिर
कभी जो उदासी दिलों में रही घिर
वहीँ कुछ सुनहरी सी यादें तेरी
हैं बन आती छैय्यां हमेशा घनेरी
राहों के पत्थर से सिखातीं संभालना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
मेरी आँखों में दिए जल उठे फिर
ये आंसू नहीं हैं ये बहता मेरा दिल
हर एक याद में हूँ तुझे ढूंढता मैं
हर एक सांस में हूँ तुझे पूजता मैं
मैं रहूँ साथ तेरे मगर तू है संग ना
पुराना वो अंगना माँ का वो कंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
सौरभ कुमार
वाह वाह ! बहुत सुन्दर !!