मज़दूर
भगवान ने तन दिया ,
भगवान ने मन दिया
साथ में दे दिया एक पेट,
पेट देकर किया मज़बूर ,
इंसान बन गया मज़दूर,
जो सचमुच इंसान है,
जिसका आसरा भगवान है,
वह बेचारा,
रोज़ रोज़, दिन रात कड़ी मेहनत करता है,
अपना और अपने परिवार का पेट भरता है,
मज़दूर तो मज़दूर है, कितना मज़बूर है,
पर कुछ लोग यहाँ ‘मगरूर’ हैं,
कैसे भी हो, चोरी से, बईमानी से,
या किसी मज़बूर की कुर्बानी से,
उन्हें तो बस अपना जेब भरना है,
दूसरो का हक़ मार कर, खुदा को भुला कर,
जो मन में आये, पैसे के लिए करना है.
उठो , देश के मज़दूरों जागो,
तकनीकी युग के साथ चलो,
नई नै तकनीक सीखो,
आपकी ताक़त देश की शक्ति है,
आपकी मेहनत ही–
सच्ची ईश्वर भक्ति है,
उठो ,ईमानदारी से करो अपना कर्म,
परिवार और देश की खातिर —
यही है सच्चा धर्म,
ईमानदारी और मेहनत की रोटी में-
जो स्वाद आएगा–
हराम, की कमाई ,
वाला वह सुख कभी ना पायेगा
—जय प्रकाश भाटिया
आप सभी के विचारों का स्वागत है, धन्यवाद, कविता ०१ मई ,मज़दूर दिवस पर लिखी थी,
सुन्दर कविता !
सुन्दर भावनाओं से युक्त उद्बोधक कविता। बधाई। ईश्वर ने मनुष्य को पेट दिया है परन्तु सृष्टि बनाकर असंख्य साधन और बल तथा बुद्धि भी दी है। अपने बल का सदुपयोग न करना व बुद्धि को न बढ़ाने में कुछ दोष मनुष्य व मजदूरों का भी होता है। सरकारी तंत्र भी दोष पूर्ण है। वेद सभी मनुष्यों की अनिवार्य, निःशुल्क तथा एक सामान शिक्षा के पक्षधर हैं। देश में धार्मिक जगत में अविद्या वा अन्धविश्वास पर आधारित मत मतान्तर भी देश में सामाजिक असमानता वा अनेक समस्याओं के लिए दोषी हैं।
बहुत अच्छी कविता लेकिन मजदूर विचारा हमेशा मजबूर ही रहेगा .
बहुत अच्छी कविता !