आदर देते आ रहे है
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कोमलांगी सुकोमल थे बहुत मगर
कष्ट हर एक सरलता से सहे जा रहे है|
रहम ही करके पाला पोसा है आपको
होके खड़े यूँ तभी आप बोल पा रहे है|
ढहाए हम पर ना जाने कितने ही सितम
क्षमा कर आपको हम मुस्कराते आ रहे है|
नहीं है मलाल ना कोई कडवाहट ही है
भूल सब कुछ आदर दिए जा रहे है|
करते नहीं कीमत आप जरा सी हमारी
सर-आँखों पर हम बैठाते आ रहे है|
उड़ाते हो मखौल सदैव कह कमजोर
हम तो गाथा आपकी सुनते आ रहे है|
कही बेबस नहीं थे कभी भी तनिक भी
सर्वोपरि आप ही को मानते आ रहे है|
आइने की तरह रही साफ़ नियत हमारी
आप ही हमें बदनीयती से देखते आ रहे है|
सदियों से समझते रहे आहेतुक आप हमें
हर रूप में हम आपको आदर देते आ रहे है| सविता मिश्रा
बहुत बढ़िया ….
सादर नमस्ते दी ..शुक्रिया
बहुत सुन्दर
शुक्रिया
अच्छी कविता बहिन जी
सादर नमस्ते भैया ..आभार
बहुत खूब .
सादर नमस्ते भैया ..बहुत बहुत शुक्रिया