कविता

चढेगे आतंकी फांसी जब

कुछ जवान शहीद हुए,
और कुछ लोग मारे गये,
आतंकी चार मरे,
हम तो हजारों गये|
यही आलम है अब हर कही,
देश पर जुल्म की हद हुई|
राजीव मरे, मारी गयी इंदिरा,
देश के गद्दारों ने,
देश को खोखला किया|
अब तो बाहरी भी घुस आये,
एक-एक कर कई जुल्म ढाए|
फिर भी लिपा -पोती करते रहे सब नेता,
साध्वी प्रज्ञा को जेल भेजा आतंकी बता|
अफजल दिखता है जहाँ हाथी जैसा,
वही प्रज्ञा की कैसी कर दी दशा|
जो आतंकी है वह मजे में रह रहा,
जिस पर शक है बस उसे मिली सजा|
सोचती है जब यह सविता,
होती है बहुत ही खफा|
पर क्या करूँ रह जाती मन मसोस,
जताती हू सिर्फ अफसोस|
शहीद हुए है जो, जो भी मारे गये,
भगवान उनकी आत्मा को बस शांति दे|
शहीदों पर भी जो सवालिया निशान लगाये,
भगवान तु उन्हें भी जल्दी से उप्पर उठा ले|
मन को होगी शांति तब,
चढेगे आतंकी फांसी जब|
ना जाने नेता सुधेरेगे कब,
क्या सब मर-मिट जायेगे तब||
||सविता मिश्रा ||

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

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