चढेगे आतंकी फांसी जब
कुछ जवान शहीद हुए,
और कुछ लोग मारे गये,
आतंकी चार मरे,
हम तो हजारों गये|
यही आलम है अब हर कही,
देश पर जुल्म की हद हुई|
राजीव मरे, मारी गयी इंदिरा,
देश के गद्दारों ने,
देश को खोखला किया|
अब तो बाहरी भी घुस आये,
एक-एक कर कई जुल्म ढाए|
फिर भी लिपा -पोती करते रहे सब नेता,
साध्वी प्रज्ञा को जेल भेजा आतंकी बता|
अफजल दिखता है जहाँ हाथी जैसा,
वही प्रज्ञा की कैसी कर दी दशा|
जो आतंकी है वह मजे में रह रहा,
जिस पर शक है बस उसे मिली सजा|
सोचती है जब यह सविता,
होती है बहुत ही खफा|
पर क्या करूँ रह जाती मन मसोस,
जताती हू सिर्फ अफसोस|
शहीद हुए है जो, जो भी मारे गये,
भगवान उनकी आत्मा को बस शांति दे|
शहीदों पर भी जो सवालिया निशान लगाये,
भगवान तु उन्हें भी जल्दी से उप्पर उठा ले|
मन को होगी शांति तब,
चढेगे आतंकी फांसी जब|
ना जाने नेता सुधेरेगे कब,
क्या सब मर-मिट जायेगे तब||
||सविता मिश्रा ||
आक्रोश से भरी कविता।
बहुत शुक्रिया भैया
बहुत अच्छी.
आभार भैया