कविता

पनाह

 

बड़ी देर से भटक रहा था पनाह की खातिर ;
कि तुम मिली !सोचता हूँ कि ;
तुम्हारी आंखो में अपने आंसू डाल दूं…
तुम्हारी गोद में अपना थका हुआ जिस्म डाल दूं….
तुम्हारी रूह से अपनी रूह मिला दूं….

पहले किसी फ़कीर से जानो तो जरा …
कि ,
तुम्हारी किस्मत की धुंध में मेरा साया है कि नही !!!!

One thought on “पनाह

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता .

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