कविता

अजन्मी ही क्यूँ जान गवाँती ?

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बेटियाँ है अनमोल फिर भी क्यूँ नहीं समझते हैं …. “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ” मुहिम चलाने की जरुरत पड़ रही है क्यूँकि लड़कियों का अनुपात लड़कों से कम हो रहा है ! जब बेटियाँ ही नहीं होंगी तो बेटे भी कहाँ से होगें …बस कुछ लाइनें लिखी हैं जरा नजर कीजिये ….

“अजन्मी ही क्यूँ जान गवाँती”

मासूम सी वो अलबेली
कोई कविता या पहेली
बन सरिता सींचती रिश्ते
प्यार मोहब्बत की डोर से
बाँधती जाने बँधन कितने
दो-२ घर का मान है बढ़ाये
फर्ज से पीछे न कदम हटाती
बेटा एक पल हो जाये कपूत
पर बेटी हरदम जान लुटाती
माँ-बाप से ले अच्छे संस्कार
ससुराल को वो स्वर्ग बनाती
कदम कदम पर करती है त्याग
अपनी खुशियाँ ओरों पर लुटाती
खुदा की अनमोल कृति है बेटी
फिर भी “अजन्मी ही क्यूँ जान गँवाती “…..

प्रवीन मलिक

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

4 thoughts on “अजन्मी ही क्यूँ जान गवाँती ?

  • रमेश कुमार सिंह ♌

    यही सच्च है।

    • प्रवीन मलिक

      धन्यवाद आदरणीय ..

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सार्थक पंक्तियाँ

    • प्रवीन मलिक

      धन्यवाद आदरणीय

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