अजन्मी ही क्यूँ जान गवाँती ?
बेटियाँ है अनमोल फिर भी क्यूँ नहीं समझते हैं …. “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ” मुहिम चलाने की जरुरत पड़ रही है क्यूँकि लड़कियों का अनुपात लड़कों से कम हो रहा है ! जब बेटियाँ ही नहीं होंगी तो बेटे भी कहाँ से होगें …बस कुछ लाइनें लिखी हैं जरा नजर कीजिये ….
“अजन्मी ही क्यूँ जान गवाँती”
मासूम सी वो अलबेली
कोई कविता या पहेली
बन सरिता सींचती रिश्ते
प्यार मोहब्बत की डोर से
बाँधती जाने बँधन कितने
दो-२ घर का मान है बढ़ाये
फर्ज से पीछे न कदम हटाती
बेटा एक पल हो जाये कपूत
पर बेटी हरदम जान लुटाती
माँ-बाप से ले अच्छे संस्कार
ससुराल को वो स्वर्ग बनाती
कदम कदम पर करती है त्याग
अपनी खुशियाँ ओरों पर लुटाती
खुदा की अनमोल कृति है बेटी
फिर भी “अजन्मी ही क्यूँ जान गँवाती “…..
प्रवीन मलिक
यही सच्च है।
धन्यवाद आदरणीय ..
बहुत सार्थक पंक्तियाँ
धन्यवाद आदरणीय