द्रौपदी खुद अंतिम दांव के लिए तैयार !
रामायण और महाभारत में मुख्य फर्क यह है की रामायण में सीता हरण होने के बावजूद सीता का वस्र हरण नहीं हुवा था ! लेकिन महाभारत में द्रौपदी हरण न होने के बावजूद भी द्रौपदी का वस्त्र हरण हुवा था !! अब महाभारत काल रामायण काल के बाद का है तो उसमे इतना अंतर तो लाजमी है | लेकिनं महाभारत के बाद का यह आधुनिक भारत काल अपने अंतर में न जाने ऐसे कितने काल बहा चूका है की आज यह समझ में ही नहीं आता की सीता का हरण कोई रावण कर रहा है या स्वयं सीता स्वयंवर में रावण को चुन रही है और वह भी केवल इसलिए की वह इस बात से आश्वस्त है की चाहे जो हो लेकिन उसका वस्त्र हरण नहीं होगा | और आज यह भी समझ में नहीं आता की पक्का पता है की वहां वस्त्र हरण होना तय है फिर भी कोई द्रोपदी किसी के जुवें का अंतिम दांव बनने को खुद तैयार हो जाती है !
जब की आज की नारी किसी भी रामायण या महाभारत में महज हरण या वस्त्र हरण का ट्विस्ट लाने का साधन नहीं रही | बल्कि आजतक उसने दुनिया को ऐसे ऐसे उदाहरण दिए है की मदर टेरेसा से लेकर फिदाईन हमलावर तक हर अच्छे बुरे क्षेत्र में उसकी तूति बोलती है ! फिर राजनीति तो महज एक छोटा सा रिस्क है ! और वह भी कहने के लिए !! असल में राजनीति में और वह भी भारत की राजनीति में तो नारी ने ऐसी छाप छोड़ी है की उसकी बराबरी आज तक कोई दूसरा नेता नहीं कर पाया !
हाँ! हाल ही के लोकसभा चुनाव में एक नेता उभरा था की जो मात्र उसकी बराबरी ही नहीं उससे भी आगे होने की खबर महान भविष्यवेत्ता नास्तरोदम या जो भी कोई है वो ,उसे बहोत पहले ही लग जाने की खबर ,खबर बन कर उभरी थी ! और दिल्ली के चुनाव आते आते बिना मुंह से आवाज निकाले लोग गर्दन हिला कर उसपर सहमति दर्शाते थे !
जी ?…
जी ! वो तो आज भी दर्शाते हैं लेकिन साथ में उसके लिए अपनी सीट से हाथ धोने की कीमत चुकाने का दर्द भी वो छिपा नहीं पा रहे हैं ! अब स्वाभाविक है दुनिया को इतना बड़ा (जगत गुरु !) परिवर्तन देने में अपना भी योगदान होने का श्रेय लेने के लिए एक विधानसभा का टिकट त्यागना तो बनता है न ?
अब सुना है की इस भावी जगत गुरु से आनेवाले दिनों में दुनिया का वर्तमान जगत बापू मिलने आ रहा है ! अर्थात सस्नेह आमंत्रण के बाद ही ! लेकिन इस सस्नेह आमंत्रण के बदले उसने भावी जगत गुरु के सामने बहोत सी स्नेहपूर्ण शर्ते रखी हैं और जगत गुरु के पडोसी को बिना कोई आतिशबाजी के सिर्फ तमाशा देखने की चेतावनी भी दी है !
तो इन दिनों इतनी बड़ी आवभगत में व्यस्त जगत गुरु को अचानक भारतीय राजनीति में दुर्योधन माने जाने वाले किसी ने द्युत खेलने की चुनौती दे डाली ! और इन गुरूजी ने भी पांडवो की भांति अपना सबकुछ ठीक ठाक होने के बावजूद द्युत में उतरकर दुनिया की गुरुता छोड़ इस द्युत में पहला ही दांव खुद चल दिया ! जब की पांडवो की तरह तो ये अबतक कुछ ख़ास हारे भी नहीं थे ! क्यूँ की इस बार इनके पास तो कृष्ण था लेकिन दुर्योधन के पास कोई शकुनी नहीं था इसीलिए इन्होने इस द्युत में महाभारत काल की तरह केवल हारा ही नहीं ,बल्कि बहुत कुछ जीता ही था !
लेकिन इससे पहले की दुर्योधन कुछ जीत पाए कृष्ण ने अपने अर्जुन पर भी भरोसा करना मुनासिब नहीं समझा और सीधे द्रौपदी को मना लिया ! शायद कृष्ण की तरह ही अन्तर्यामी हो इसीलिए इससे पहले की सबकुछ हारकर अंत में द्रौपदी का दांव लगाने की नौबत आये , उन्होंने पहले ही द्रौपदी को लाकर संभावित नुकसान से पुरे पांडवो को बचा लिया !
अब दांव चला है तो खेल तो आगे बढेगा ही ! लेकिन हम इससे आगे की कथा नहीं जानते क्यूँ की वह अभी घटनी बाकी है !
डिस्क्लेमर :- यह लेख किस के भी हरण या वस्त्र हरण के उचित होने का दावा नहीं करता |
महाभारत के संदर्भ सहित वर्तमान राजनीति पर आपका कटाक्ष पठनीय है। लेकिन जिसको आप द्रौपदी कह रहे हैं वह द्रोपदी सिद्ध होती है या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा।