कविता

पर्दों के पीछे इंसान जैसा कोई रहता है….

चारदीवारी में
एक बड़ा सा दरवाजा है
एक दरवाजा छोटा सा भी हैं
ताला लगा है लेकिन वहाँ
भीतर की तरफ

चारदीवारी के भीतर
कई खिड़की दरवाजों वाली
इमारत है
कुछ रोशनदान से झरोखे भी हैं
लेकिन वे
कस कर बंद कर दिए गए हैं…

इस घर जैसी इमारत में
कई कमरे है
कमरों के दरवाजों पर पर्दे हैं

पर्दों के पीछे
इंसान जैसा कोई रहता है,
इस इंसान के पास
हृदय जैसी एक चीज भी है
और
इस हृदय को
उड़ान भरने से कोई
ताला , चारदीवारी रोक
सकती नहीं…..

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

3 thoughts on “पर्दों के पीछे इंसान जैसा कोई रहता है….

  • प्रवीन मलिक

    बहुत उम्दा रचना …

  • विजय कुमार सिंघल

    गहरा अर्थ लिये हुए एक बेहतर कविता

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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