महान हिमालय
अचरज है कि,
तु खड़ा है।
हिम का,
आलय बन कर।
अपने पावन
पवित्र जल से
पग धो रहा है,
भारत माँ का।
गंगा ,यमुना,
सतलज,ब्रम्हपुत्र
ये सब,
तेरी बेटियां,
तेरे पिघले हृदय की,
एक-एक बुन्द पिकर,
ले चुकी हैं।
महानदि का रूप।
प्रेम पाकर अपने विराट,
पिता का।
ये बेटियां कहां भागी जा रही हैं।
चिड़ दिनार के जंगलों में,
पहुँच कर।
अपनी बाल समय के,
याद में खो जाती हैं।
ओ भी यह सोच रही है
कितना महान हमारे पिता
महान हिमालय ।।
~~~~~~रमेश कुमार सिंह
बहुत सुन्दर कविता !
धन्यवाद श्रीमान जी
हिमालय को बहुत ख़ूबसूरती से बिआं किया है.
आपका आभार श्रीमान जी