रेत के सीने पे यादें उकेर लेते हैं
रेत के सीने पे हम कुछ यादें उकेर लेते हैं
आजकल दोस्त भी हमसे आँखें फेर लेते हैं
क्या वो दिन थे कि मिला करते थे रोज शामो को
रोज टकराते थे मुहब्बत से भरी जामो को
आजकल भरे प्यालों से आँखें फेर लेते हैं
रेत के सीने पे हम कुछ यादें उकेर लेते हैं
क्या मिला, खोया क्या होश नहीं है हमको
जश्न में दोस्ती के हमने भुलाया था गम को
अब तो जश्न के नाम पे गम ही बिखेर लेते हैं
रेत के सीने पे हम कुछ यादें उकेर लेते हैं
बहुत अच्छा गीत !
बहुत खूब.