“गंगा”
जन्म हिमालय से लेती,
खुशी राग लिये हुए चहकती।
जैसे गाती और नाचती,
जैसे हो एक नन्ही बेटी।
देंवो की वो है नदी,
धरती पर हुई भागीरथी।
मैदानी भागों में उतरती,
यहाँ एक सभ्य रमणी होती।
वो करती सबका कल्याण,
जो भी करते इनका ध्यान।
बन जाते हैं अच्छे इन्सान,
इसलिए इनके अनेकों नाम।
पृथ्वी पर हुआ इनका अपमान,
पापी हो गये इन्सान।
रखते है मतलब अपने काम से काम,
पुण्य रखे हैं पाप का। नाम।
माँ है गंगा सभी की,
देवों,दानवों ,मानवों की,
हर समय सुनती भक्तों की,
भला कर रही इस लोक की।
बेहतरीन कविता !
धन्यवाद श्रीमान जी।
अच्छी कविता.
धन्यवाद श्रीमान जी
आभार श्रीमान जी।