उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 21)
18. राजा का तुमुल नाद
हर-हर महादेव और जय श्री राम के घोष के साथ सिरों पर कुसमानी पाग बाँधे राजपूती सेना राजा हम्मीर और मंत्री रतिपाल के नेतृत्व में साक्षात काल का रूप धर के मुस्लिम सेना पर झपटी। राणा ने इस समय साक्षात शिव का रूप धारण कर लिया था, उनके तांडव से मुस्लिम सेना में हाय-हाय मच गई। सारे मुस्लिम इस तरह हाय बचाओ, हाय बचाओ चिल्ला रहे थे मानो जैसे वो अल्लाह-हो-अकबर, अल्लाह-हो-अकबर चिल्लाते हैं।
राणा की वीरता से घबराकर उलूग खाँ, नुसरत खाँ से बोला ”वजीर नुसरत खाँ जी ये राणा तो हमारी सेना को भेड़ बकरियों की तरह काट रहा है आप इसे समझिए।“ उलूग खाँ की बात सुनकर, नुसरत खाँ राणा को रोकने के लिए आगे बढ़ा।
राणा हम्मीर और वजीर नुसरत आमने-सामने थे, राणा ने बाण वर्षा की, एक-एक बाण से सात-सात घुड़सवार धूल चाटने लगे। यह देख नुसरत खाँ चार हजार जवानों को लेकर राणा पर दौड़ा। राणा ने बाण वर्षा से उस दल को तितर-बितर कर दिया, फिर भी नुसरत खाँ कुछ और सैनिक ले उसे घेरने लगा। राणा चारों तरफ से घिरा था, पर उसकी तलवार की चमक तुर्को के हृदय में भय उत्पन्न कर रही थी।
नुसरत ने राणा को ललकारा ”ओ काफिर, तलवार रख सुल्तान का अहदनामा ठुकराता है।“ राणा ने आग्नेय नेत्रों से नुसरत को घूरकर कहा ”ठहर पापी नुसरत, तूने ही झैन के वीर सरदारों को मारा है।“ फिर दोनों आपस में भिड़ गए, इसी घालमेल में राणा ने नुसरत के पेट में कटार भोंक दी। नुसरत भरभराकर घोड़े से गिरा। उसके गिरते ही मुस्लिम सेना के पाँव उखड़ गए। भागो-भागो, बचाओ-बचाओ तुर्क सेना में बस यही सुनाई पड़ रहा था।
उलूग खाँ ने हसन से नुसरत को उठाने को कहा। वह इतना डरा हुआ था कि राणा के आस-पास भी फटकना नहीं चाहता था। सेना लेकर उलूग खाँ सिर पर पैर रखकर भागा, राणा ने पीछा किया सीमा के बाहर तक खदेड़ा। हसन, नुसरत को उठाकर जंगल की तरफ भागा अभी उसकी साँसें चल रही थी।
असंख्य तुर्क और राजपूती सैनिक मारे गए। वीर राणा हम्मीर की विजय हुई। विजयी सैनिकों ने हर-हर महादेव के बाद राणा हम्मीर की जय बोली।