तुम न ज्यादा दूर….
तुम न ज्यादा दूर ,न ज्यादा पास ,रहा करो मेरे
बस तुम घने कोहरे सा आस पास रहा करो मेरे
तस्वीर में ,प्रतिबिम्ब में ,निहारा करता हूँ मैं तुम्हें
अधर कहता है ,साथ बन चिर प्यास रहा करो मेरे
सूरज ,चाँद ,तारे ,बादल ,पर्वत करते हैं मेरा पीछा
तुम भी साथ ,बनकर व्यापक आकाश रहा करो मेरे
इन्द्रधनुष ,मृगतृष्णा ,और क्षितिज तीनों ही माया है
मन के भीतर बनकर चेतना का विकास रहा करो मेरे
साकार हो या निराकार सब ,तुममें ही तो समाहित है
साथ बन मेरे काव्य के अंतरिक्ष का ब्यास रहा करो मेरे
किशोर कुमार खोरेन्द्र
सुन्दर …
अच्छी कविता !