कविता —-”हे भारत के वीर”
हे भारत के वीर
तू क्यों नींद में पड़े बेखबर
सो रहे हो …….?
उठो,और आँखें खोलो
देखो,प्राची-दिशा का ललाट
सिंदूरी-रंजित हो उठा है
अब सोने का समय नहीं है
अगर सोना ही है तो,
अनंत निद्रा की गोद मे जाकर सो जा
माया -मोह-ममता को त्याग कर
एक नए इतिहास की सृजन कर
तेरी माँ, तेरी शस्यश्यामला
तुझे पुकार रही है …….
उसके आंसुओं की एक-एक बूंद की
सौगंध है तुझे,
उठ ,और राष्ट्र का मुख उज्जवल कर दे
तुम ही हो,जिसके अथक प्रयास से
भारत का भाग्य-निर्मित है
राष्ट्र के भविष्य की सफलता के बीज
भी तुम ही हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उठो ,और उसका बेड़ा पार करो
बोलो अपने मुक्तकंठ से-
वन्देमातरम…..वन्देमातरम ….वन्देमातरम …!
संगीता सिंह ”भावना”