गणतंत्र की झाँकी बनाम झाँकियों में गणतंत्र
बड़ा ही सुंदर दृश्य था। राजपथ के दोनों ओर गणतंत्र भारत के गण बैठे थे। कोहरे में झाँकियों को देखने, जनसमुदाय के बीच बैठा था। ध्वज-वंदन हुआ। तिरंगा आसमान में लहराया। राष्ट्रगान हुआ। कुछ लोग सावधान खड़े हो गये। कुछेक खुजा रहे थे तो कुछ आवश्यक वार्ता में लगे कि पिछली रात उन्होंने क्या किया।
झाँकियों का सिलसिला आरंभ हो गया था। पहली झाँकी में एक बस के भीतर बलात्कार करते षूरवीरों के चंगुल में चीखती लड़की थी और कुछ लोग हाथ बाँधे मुसकरा रहे थे। व्हाट ए मार्वलस बलात्कार !! झाँकी पर लिखा था-यमदूत नये रूप में- नई दिल्ली। उसके पीछे की झाँकी महाराष्ट्र की थी। बड़ी सांस्कृतिक झाँकी थी। इसमे कृषि प्रधान भारत का सजीव चित्रण किया गया था। एक किसान की निर्जीव काया फाँसी पर झूल रही थी। पास ही अन्य किसान हाथों में फंदा बनाये उसे देख रहे थे। षायद वे रास्ता देख रहे थे कि वह षव उतरे तो हम लटकें। कृषि मंत्री, एक ओर शक्कर फाँकते मुस्कुरा रहे थे। झाँकी का नामकरण किया गया था-हत्या या आत्महत्या।
उत्तरप्रदेश और बिहार की झाँकियाँ भी नयनाभिराम थीं। बिहार की झाँकी में मतदान केन्द्र दिखाया गया था, जिसे आठ-दस बंदूकधारी घेरे खड़े थे। एक व्यक्ति मतदाताओं के मतपत्र छीन, उन्हें खदेड़ रहा था तो दूसरा छीने गये मतपत्रों पर मुहर लगाकर मतपेटी में डाल रहा था। मतदान अधिकारी चाय पीते हुए मतदान होते देख रहे थे। झाँकी का शीर्षक था-गणतंत्र का चीरहरण। उत्तरप्रदेश की झाँकी में एक ‘नेता जी ’ का बाल-दिवस मनाया जा रहा था। मंच पर कुछ बाइयाँ अधनंगे लिबास में थिरक रहीं थी। गरीब जनता ठंड में ठिठुर रही थी। झाँकी पर लिखा था-‘आधुनिक समाजवाद।’
इस झाँकी का स्वरूप बड़ा ही धार्मिक था- गुजरात की झाँकी जो थी। हिन्दु और मुसलमानों के हाथों में उनके पारंपरिक हथियार थे। एक गर्भवती महिला का पेट काटकर दिखाया जा रहा था कि हम अतीत में कितने बर्बर थे। यह झाँकी हमारे गौरवमयी सांस्कृतिक अतीत को रेखांकित कर रही थी। षीर्षक भी बड़ा ही सांस्कृतिक था-मानवता का विकास। उसके पीछे की झाँकी पंजाब की थी देशभक्ति सेे परिपूर्ण। भांगड़ा करते युवकों के हाथों मे शराब की बोतल थी जिस पर लिखा था- रंग दे बसंती। नाचते हुए युवकों को फाँसी के फंदे में गर्दन डाले भगतसिंह आश्चर्य से देख रहे थे। राजगुरू और सुखदेव उनके आँसू पोंछ रहे थे। शीर्षक था- शहीद के आँसू।
इसके बाद की झाँकी तमिलनाडु़ और पश्चिम बंगाल का संयुक्त उपक्रम थी। इसमें त्रेतायुगीन इतिहास को दर्शाया गया था। दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री रामसेतु की शिलाओं को उखाड़ रहे थे। और साथ ही चिल्लाते जा रहे थे-‘ये पुल हमारे बाप-दादाओं ने बनवाया था। हम इसे टिकने नहीं देंगें।’ झाँकी का शीर्षक था- आस्था के दुश्मन।
इधर आंध्रप्रदेश की झाँकी में तिरूपति बालाजी के मंदिर के सामने अपार भीड़ दिखाई गयी थी। मंदिर के अंदर का दृष्य अनुपम था। भगवान का कद छोटा था और कुछ धनवान भक्तों की ऊँचाई अधिक थी। भक्त भगवान की पूजा कर रहे थे और पुजारी, इनको निहार रहे थे-कृतज्ञ दृष्टि से। लग रहा था आज ही के दिन के लिए वे इस मंदिर के पुजारी बने थे। शीर्षक था-भक्त बड़ा या भगवान।
अगली झाँकी में विदेषशी लड़कियों से बलात्कार करते हुए दर्शाया गया था। यह पर्यटन मंत्रालय की झाँकी थी। ऊपर लिखा था- अतिथि देवो भव। इसके बाद की झाँकी दर्शकों के विशेष आकर्षण का केन्द्र थी। यह झाँकी लगभग पाँच मिनट तक प्रदर्शन करती रही। जिसमें तारीफ की बात यह रही कि एक भी दर्शक ने उतनी देर तक अपनी पलकें नहीं झपकाईं। जी हाँ! यह फिल्म उद्योग की झाँकी थी। इसका शीर्षक था-हमारा अतीत और हमारा भविष्य। इसमें सिने तारिकाएँ पूर्ण वस्त्रों में सजी-धजी आ तो रहीं थीं किन्तु मंच छोड़ने तक वे लगभग दिगम्बर हो जाती थीं। इसमें भारतीय फिल्म उद्योग का क्रमिक विकास दिखाने का प्रयास किया जा रहा था।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की झाँकी में गुरूजी, बच्चों को एड्स से बचने के लिए गर्भ निरोधकों के उपयोग का तरीका और लाभ समझा रहे थे। एक झाँँकी में नारीशक्ति को दर्शाया गया था। लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती और भारतमाता देख रहीं थीं कि किस तरह एक नवजात बालिका को जन्म लेते ही दफनाने की तैयारी चल रही है। यह सांस्कृतिक विभाग की झाँकी थी।
आयकर विभाग की झाँकी में एक बड़ा-सा कोल्हू बनाया गया था। जिसमें बैल की जगह वित्त मंत्री थे। इसमें वे देशवासियों को पेर रहे थे। और घानी से तेल की जगह खून निकल रहा था। रक्षा मंत्रालय की झाँकी में एक शहीद की विधवा, राष्ट्रपति से परमवीर चक्र ले रही थी। चिथड़ों में लिपटी इस माँ के पास उसके दो कंकालनुमा बच्चे हाथ जोड़े नंगे खड़े ठिठुर रहे थे। तभी एक जोरदार नारे से आकाश गूँज उठा-भारतमाता की…..और मैंने भी हाथ उठाकर समर्थन में जोड़ दिया-‘जय’।
जय कहते ही मुझे याद आया कि मैं अब मैं जाग गया हूँ। थोड़ी देर बाद मेरी तंद्रा भंग हुई तो याद आया कि आज गणतंत्र-दिवस है। मुझे झण्डा फहराने विद्यालय जाना है। मैं बार-बार सोचता रहा-वह मेरा सपना था या सच!!