तुम्हें अब…
तुम्हें अब साकार जीने लगा हूँ
मय ए हुश्न जैसे पीने लगा हूँ
लोग मुझसे पूछते हैं वो कौन है
आजकल बेजुबां सा रहने लगा हूँ
जरा सी अवहेलना सह नहीं पाता
न जाने क्यों खुद से मैं डरने लगा हूँ
कहीं तू भी तो संग दिल नहीं है
ख़ामोशी से यह कहने लगा हूँ
तेरे मेरे बीच कोहरे की दीवार है
तहे बर्फ सा अब पिघलने लगा हूँ
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत खूब !
shukriya vijay ji