महानता
किसी भी व्यक्ति की महानता को आंकने के लिए प्रत्येक समाज या विचारधारा के अलग-अलग पैमाने होते हैं। इन्हीं के आधार पर अशोक, अकबर और सिकन्दर आदि को महान कहा गया है। वेदों में महानता के पांच लक्षण बताये गये हैं। प्रथम लक्षण है व्यक्ति का कर्मयोगी होते हुए परमेश्वर, समाज और राष्ट्र के लिए जीवन समर्पित करना। उसका दूसरा लक्षण है कि वह मान-अपमान, लाभ-हानि, आदि की परवाह न करते हुए और सदा आनन्दित रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता रहता है। वह दूसरों को भी आनन्द प्रदान करता है। उसका तीसरा लक्षण यह है कि वह मननशील, सहनशील और मर्यादा पालक होता है। उसका धर्म मनुष्यता या परापेकारित होता है। गीता की भाषा में निष्काम कर्म करने वाला अर्थात अपने लाभ के लिए कर्म न करने वाला व्यक्ति महानता के लक्षण पूरे करता है। चतुर्थ लक्षण यह है कि उसमें क्षुद्रता अर्थात छोटापन नहीं होता है। उसका हृदय विशाल होता है और वह प्रत्येक जीव को समान आदर और प्रेम की दृष्टि से देखता है। महानता का पांचवां लक्षण यह है कि वह स्वयं प्रकाशित होता है और अपने इस प्रकाश से अन्यों को भी प्रकाशित करता है अर्थात वह ज्ञान और ऊर्जा से परिपूर्ण होता और अन्यों को भी प्रेरित करता है जिससे वे भी अपना अज्ञान मिटाकर कर्मशील होकर ज्ञानमार्ग पर बढ़ सकते हैं। सदैव दूसरों की सहायता करने वाला, विकार रहित, पुरुषार्थयुक्त, उत्तम बल से युक्त, बुद्धिमान, विशेष ज्ञान वाला और बिना किसी स्वार्थ के सेवा में तत्पर रहने आदि गुणों से सुशोभ्ति होना भी महानता के अपूर्व लक्षण हैं।
महान व्यक्तियो के कर्म और स्वभाव को समझ कर यदि हम आत्मसात कर सकें तो अपने जीवन में कुछ सुधार ला सकते हैं। आज तक इस धरती पर जितने भी कर्मशील लोग पैदा हुए हैं, सभी ने अपने‘-अपने तरीके से से कुछ रचनात्मक योगदान दिया है। इस सृष्टि को इन विचारकों, मनीषियों, और वैज्ञानिकों आदि ने समस्याओं का समाधान करते हुए समृद्ध बनाया है। अंगे्रजी भाषा में एक कहावत है कि कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ महान बन जाते हैं और कुछ पर महानता थोप दी जाती है। हमारी संस्कृति के अनुसार महानता किसी पर थोपी नहीं जा सकती है। सतत साधना करते हुए नर और नारायण की सेवा करके हम महान बन सकते हैं।
कृष्ण कान्त वैदिक
अच्छे विचार ! किसी विद्वान ने कभी इस तरह कहा था- कुछ लोग जन्म से महान होते, कुछ कर्म से महान होते हैं और कुछ महानता अपने ऊपर जबरदस्ती ओढ़ लेते हैं. जो कर्म से महान बनते हैं, वे ही वास्तव में महान हैं.
मुझे आपकी टिप्पणी बहुत अच्छी लगी। कुछ क्षण मैंने इस पर विचार भी किया। मैं सोच रहा हूँ कि ऐसे कौन लोग हो सकते है जो जन्म से महान होते हैं वा हुए हैं। श्रिष्टि की आदि में उत्पन्न पांच ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य, अंगीरा व ब्रम्हा हे मुझे नाम से महान प्रतीत होते हैं। अन्य नाम सोच रहा हूँ जिनको व जिसे हम जन्म से महान कह सकते हों। मैं इसी विषय को अपने किसी लेख का विषय बनाना चाहता हूँ। आपका हार्दिक धन्यवाद।
पठनीय, मननीय, स्तुत्य एवं प्रशंसनीय विचार एवं लेख। लेखक को बधाई।