कविता

जी लूं ज़रा

गर तुम इजाजत दो तो खुश हो लूं ज़रा
बैठ के तुम्हारे पहलू में हस लूं रो लूं ज़रा

दिन जो बचे हैं जिंदगी के अब थोड़े से
उन्हें तुम संग जी भर के जी लूं ज़रा

दुनिया के सामने समझदार बनती रही हरदम
गर बुरा न मानो तो तुम संग बचपन जी लूं ज़रा

तकदीर में जो लिखा होगा वो देखा जायेगा
जी चाहता है तकदीर से मुंह मोड़ लूं ज़रा

रफ्ता-रफ्ता खत्म हो रहा है सफर जिंदगी का
गर इजाजत दो तो चंद सांसे महका लूं ज़रा

अब के सोई तो शायद उठ न पाऊंगी कभी
कहो तो थोड़े सपने तुम संग बुन लूं ज़रा

गर तुम इजाजत दो तो खुश हो लूं ज़रा
बैठ के तुम्हारे पहलू में हस लूं रो लूं ज़रा

प्रिया वच्छानी 

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

3 thoughts on “जी लूं ज़रा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह , बहुत खूब.

    • प्रिया वच्छानी

      आभार गुरमेल सिंह जी और विजय भाई

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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