जी लूं ज़रा
गर तुम इजाजत दो तो खुश हो लूं ज़रा
बैठ के तुम्हारे पहलू में हस लूं रो लूं ज़रा
दिन जो बचे हैं जिंदगी के अब थोड़े से
उन्हें तुम संग जी भर के जी लूं ज़रा
दुनिया के सामने समझदार बनती रही हरदम
गर बुरा न मानो तो तुम संग बचपन जी लूं ज़रा
तकदीर में जो लिखा होगा वो देखा जायेगा
जी चाहता है तकदीर से मुंह मोड़ लूं ज़रा
रफ्ता-रफ्ता खत्म हो रहा है सफर जिंदगी का
गर इजाजत दो तो चंद सांसे महका लूं ज़रा
अब के सोई तो शायद उठ न पाऊंगी कभी
कहो तो थोड़े सपने तुम संग बुन लूं ज़रा
गर तुम इजाजत दो तो खुश हो लूं ज़रा
बैठ के तुम्हारे पहलू में हस लूं रो लूं ज़रा
— प्रिया वच्छानी
वाह वाह , बहुत खूब.
आभार गुरमेल सिंह जी और विजय भाई
बढ़िया !