शब्दों का एक घोंसला
ह्रदय के प्यार के सागर की
आखरी सतह से
सुनहरे अक्षरों के तिनकों को
चुनकर मैंने बनाया है
शब्दों का एक घोंसला
तुम्हारी कविता यदि रहने यहाँ
आ जाए तो बड़ जाएगा
मेरे काव्य का भी हौसला
कोमल छंदों के नर्म तकिये हैं
और प्रेम पर लिखे
नज्मों का है यहाँ पर बिछौना
तुम्हारे और मेरे
समवेत मधुर गीतों से
गूंज उठेगा
मौन के अन्तरिक्ष का कोना कोना
यहाँ पर न मन हैं न रूप
केवल मेरी आत्मा है
और है सिर्फ तुम्हारी रूह
कल्पनाओं की शाख पर
मैं और तुम करेंगें बसेरा
क्षितिज लेकर आया हैं
हमारे लिए मनोरम नूतन सबेरा
मिलन की आश में विरह की न रह पायेगी अब दूरी
मेरे काव्य के नजदीक रहकर
तुम्हारी कविता भी हो जायेगी पूरी
ह्रदय के प्यार के सागर की
आखरी सतह से
सुनहरे अक्षरों के तिनकों को
चुनकर मैंने बनाया है
शब्दों का एक घोंसला
तुम्हारी कविता यदि रहने यहाँ
आ जाए तो बड़ जाएगा
मेरे काव्य का भी हौसला
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बढ़िया कविता !
bahut shukriya