उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 26)
23. धिक्कृत अभिलाषा
मलिका-ए-हिंद (कमलावती) ने खुद को पूर्णरूप से सुल्तान के कदमों में निसार कर दिया। अलाउद्दीन ने उसे अपनी प्रमुख बेगम बनाया और कई दास (पुरुषांग कटे हिजड़े), दासियाँ उसकी खिदमत में लगाई। कमलावती अपने वैभव पर इतराती और दिल्ली की पटरानी बनने पर गर्व करती।
1303 में जब एक ओर अनिंद्य सुंदरी चित्तौड़ की रानी पद्मिनी को पाने के लिए सुल्तान ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया, तो यह धर्मभ्रष्ट रानी कमलावती (मलिका-ए-जहाँ) अपने रुतबे को लेकर बड़ी शंकित हुई। पर रानी पद्मिनी पति परायण और धर्मावलंबी निकली। एक मुस्लिम की शय्या सहचरी बनने की जगह उस वीरांगना ने मृत्यु को गले लगाना श्रेयस्कर समझा। धर्म, शील और नारी जाति के सम्मान के लिए रानी पद्मिनी ने जौहर की धधकती ज्वाला में अपनी स्र्वणिम देह को भस्मीभूत कर दिया। कामुक सुल्तान अपनी धिक्कृत अभिलाषा के साथ हाथ मलता रह गया।
उस वीरांगना महारानी पद्मिनी की साहसिक ने मौत से कमलावती के कलेजे को बहुत ठंडक पहुँची। अब उसका मलिका-ए-हिंद का खिताब सुरक्षित था। एक ओर जहाँ रानी पद्मिनी ने अलाउद्दीन की धिक्कृत अभिलाषा को अपने वीरोचित कार्य से मिट्टी में मिला दिया वहीं यह रानी कमलावती अपने हृदय में एक अन्य ही धिक्कृत अभिलाषा पाले बैठी थी।
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी रानी की रूपराशि पर फिदा था, रानी भी सुल्तान को किसी वेश्या की भाँति सहवास सुख प्रदान करती थी। यही कारण था कि कामुक सुल्तान अपनी अन्य बेगम और रखैलों से ज्यादा रातें कमलावती के सहवास में गुजारता था। कमलावती ने सुल्तान के दो शहजादों और एक शहजादी को जन्म दिया। हर बार प्रसव के बाद रानी की सुंदरता और बढ़ जाती। शहजादी के जन्म के बाद रानी को अपनी पुत्री देवलदेवी को देखने की अभिलाषा हुई। यह जानते हुए भी कि दिल्ली आते ही उस कोमल यौवनांगी को भी सुल्तान या किसी अन्य अमीर की यौनि सहचरी बनना पड़ेगा, उसने सुल्तान से देवलदेवी को देखने की प्रार्थना की। अपनी ही पुत्री को यूँ म्लेच्छ की यौन दासी होते हुए उसे देखने में क्या सुख था?
उस रात जब सुल्तान कमलावती के शरीर को मर्दन करके उसके साथ यौन सहवास का सुख लेके उसके दूध से भरे स्तनों पर सिर रखकर लेटा था। ताजा हुए प्रसव के कारण कमलावती के स्तन इस समय दूध से भरे रहते थे। कमलावती ने अनुनय भरे स्वर स्वर में कहा ”सुल्तान हमसे अब खुश तो होंगे।“
”वो तो हम हमेशा रहते हैं मलिका-ए-हिंद, पर आज इस सवाल की कोई खास वजह?“
”हाँ, मेरे स्वामी, मैंने आपके शहजादों और शहजादी को जन्म दिया, क्या यह खुश होने की वजह नहीं।“
सुल्तान ठट्ठा मारकर हँसते हुए बोला ”ये कोई नई बात नहीं मलिका-ए-हिंद, हर बेगम शहजादे या शहजादी को पैदा करती ही है। पर हम फिर भी तुमसे काफी खुश हैं, क्योंकि तुम बिस्तर पर हमें बहुत सुकून पहुँचाती हो।“
”अगर सुल्तान हमसे खुश हैं, तो क्या मेरी एक इच्छा पूरी न करेंगे।“
”मल्लिका-ए-हिंद, अगर तुम्हारी इच्छा जायज हुई तो हम सोचेंगे।“
”मैं अपनी पुत्री देवलदेवी को देखना चाहती हूँ, उससे मिलना चाहती हूँ। ये सुल्तान-ए-अजीम के कदमों में मेरी गुजारिश है।“
कमलावती की बात सुनकर सुल्तान उठकर बैठते हुए बोला ”ओह देवलदेवी, उसे तो हम भी देखना चाहते हैं, हम देखना चाहते है आप जैसी खूबसूरत की जवान शहजादी कितनी खूबसूरत हैं। उस दिन वह हाथ न आई। वह काफिर, पाजी कर्ण उसे लेकर फरार हो गया। खैर हम बंदोबश्त करते हैं, देवलदेवी के यहाँ लाने का। हम उस खूबसूरत शहजादी को देखने को बेताब हैं।“
कमलावती, सुल्तान के कदम बोसी करते हुए बोली, ”सुल्तान ने मेरी बात मानकर, मलिका-ए-हिंद का मान बढ़ा दिया। अब हम सुल्तान की रहमत से अपनी पुत्री से मिल सकेंगे।“
उस वक्त अलाउद्दीन ने आँखें बंद करके देवलदेवी के बुत की कल्पना की और उसके लबों से निकला, ”माशाअल्लाह।“ कमलावती, सुल्तान की बात का भेद समझकर भी न समझ सकी।
जब मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और केवल विलासिता रह जाती है, तब ऐसा ही होता है. अच्छा उपन्यास.
bahut aabhar sir ji..