प्यार
प्यार -प्यार …कहते रहते हो सदा
क्या समझा है ……कभी प्यार को
क्या जानी है ….कभी तड़प उसकी
क्या तड़पे हो…..कभी किसी के लिए
क्या किया है…कभी किसी का इंतजार
क्या किया है ….कभी खुद को बेकरार
क्या सिर्फ़ …पाने का नाम ही प्यार है
क्या सिर्फ़ ….अपना बनाना ही प्यार है
क्या सिर्फ़ …..इजहार करना ही प्यार है
नहीं ………
प्यार ….इक प्यारा सा अहसास है
कभी ना बुझे जो….ये वो प्यास है
खो देने पर भी वो…अपना सा लगे
ये दिल से दिल का …….विश्वास है
जिसमें ……कोई उम्मीद नहीं होती
जिसमें …….कोई चाहत नहीं होती
यह ऐसा …..,पवित्र सा अहसास है
जानना चाहते हो क्या होता है प्यार
तो देखो राधा कृष्ण की जोडी को
जानो …..समझो उनके प्यार को
कभी …….एक ना होकर भी
सदा ……बनकर रहे वो एक
दिल से दिल का रिश्ता होता है नेक
सिर्फ़ इजहार करना ही ….प्यार नहीं
सिर्फ़ इकरार करना ही ….प्यार नहीं
सिर्फ़ किसी को पाना ही …प्यार नहीं
किसी का होकर रहना भी ….प्यार है
न पाकर भी प्रेम करना ………प्यार है
निश्चल प्रेम धारा बरसाना …..,,प्यार है
समेट कर किसी की यादों को …मन में
आँसूओ को पी जाना भी…….प्यार है
क्या कहूं और में …..और क्या प्यार है
जो शब्दों में न समा पाये कभी
बस…………वही प्यार है ।
..प्रिया
प्यार की परिभाषा अच्छी है ….
अच्छी कविता !