कविता

रिश्ते(सात जन्मों के बँधन)

सात फेरों के नाजुक बधँन में,
गुलाबी कपडे में ,
मन्त्रोच्चार के साथ!
पान,सुपारी,रुपया रख,
गाँठों में, बाँध दिये जाते हैं रिश्ते!
जन्म -जन्मानतरों की दुहाई दे,
हाथों में हाथ देते वक्त,
रख देते हैं,
हल्दी लगी आटे की लोई!
पता नहीं क्यों ?
हल्दी एन्टीसेफ़्टिक होती है,
मरहम पहले ही, लगा देते है!
शायद रिश्तों के, जख्मी होने का,
अंदेशा रहता होगा इसलिये!
बाँध दिये जाते हैं, दो अंजान हाथ,
सात जन्मों के बँधन में!
सुगंधित गंध,पवित्र अग्नी,
और मन्त्रों से गुँजित वतावरण में!
दिल से दिल का मेल है,या नहीं,
फ़र्क नहीं पडता!
भर दिये जाते हैं,माँग में,
रिश्तों के लाल रंग !
और पहनाकर मंगलसूत्र,
इतिश्री होती है,सात जन्म के बंधन की!
इसका कोई सबूत कानून ,
नहीं माँगता,
कि समय की कसौटी पर,
कितने खरे उतरेंगे ये!
संविधान में इसके लिये भी,
एक नीयम होना चाहिये!
एक बेटी का नहीं,
पूरे देश समाज का भविष्य ,
दाँव पर लगता है!
अग्नी के समक्ष फेरे दिलवा,
पूर्णाहुती होती है,
रिश्ते के बधँने की!
या संकेत होता है कि,ताउम्र जलना है,
रिश्तों की अग्नी में,
समझ नहीं पाती!
सोचती हूँ अकसर ..

जब भी किसी लडकी के विवाह से लौटती हूँ!..रिश्ते क्या हैं ??? जो मन से निभाये जायें, या सामाजिक मर्यादाओं के तहत निभाया जाने वाला वो बंधँन, जिसे फ़र्ज़ और कर्तव्यों की बलि बेदी पर चढ़ा दिया जाता है!….दुख होता है,जब ये साथ नहीं निभा पाते एक -दूजे का.रिश्ते टूटकर बिखर जाते हैं..और सजा मासूम बचपन पाता है!….ये तो मेरे निजी विचार हैं..जैसा देख में महसूस करती हूँ..लिखा! आप सबके अपने विचार हैं….अगर लिखें तो एक नयी दिशा मिलेगी ,सोचने की..
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.. राधा श्रोत्रिय “आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “रिश्ते(सात जन्मों के बँधन)

  • मोहन सेठी 'इंतज़ार', सिडनी

    अगर बंधन स्वेच्छा से है तो रस्में अच्छी लगती हैं लेकिन अगर ये एक मजबूरी में थोपा गया बंधन है तो मुश्किल है ….

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