मधु दी
मधु दी का ननिहाल और मित्रा भाभी (मेरी पड़ोसन) का माइका एक ही शहर गया (बिहार) में होने के कारण मधु दी मित्रा भाभी को मौसी बुलाती थीं। हो सकता है कि वे एक-दूसरे को पहले से जानती हों, लेकिन घनिष्टता हुई उन दिनों जब भाभी स्कूल में पढ़ाती थीं।
मेरी मुलाक़ात मधु दी से मित्रा भाभी के घर आने जाने की वज़ह से हुई थी। वे एक ट्रस्टी के हैसियत से मुझसे मिलने पहली बार मेरे घर आई थीं। उनका विचार था कि मैं भी एक शिक्षिका के रूप में उनके स्कूल की सेवा करू। मैं स्कूल तो नहीं गई, लेकिन मधु दी से परिचय हुआ और उनके बारे में जानने के बाद बहुत हतप्रभ रह गई मैं।
मधु दी को पढ़ने का बहुत शौक था और वे पढ़ने में तेज़ भी थीं। चुकि वे कायस्थ परिवार से थी (क्यूँ कि आज से 50-55 साल पहले बिहार में सब जातियों में लड़कियाँ पढ़ाई नहीं करती थी ) उनके घर में उनकी पढ़ाई पर कोई रोक-टोक नहीं हुई और वे सरकारी साहब (मेमसाहब) बन गई। अब उनकी शादी का समय आया, तो लड़का भी उनसे ऊँचे पद पर हो या कम से कम उनके बराबरी का हो और उनके जाति का ही हो और वैसा लड़का उनको पसंद भी कर ले और दहेज़ भी न ले , जो कि बिहार में असंभव नहीं तो कठिन बहुत है, उस समय तो नामुमकिन था, क्यूँ कि वे देखने में बहुत ही साधारण थीं। इन सब बातों में उनकी उम्र निकलती चली गई और एक समय ऐसा आया कि विधुर मिलने लगे जो उन्हें गंवारा नहीं हुआ था। थक-हार कर उनके घर वाले शादी का विचार ही त्याग दिए।
एकतरफ सब उनकी शादी को लेकर परेशान थे ,तो दूसरी तरफ वे नौकरी के लिए बिहार से बाहर थीं , लेकिन वहाँ उनका औरत के रूप में साहब बन कर रहना कठिन हो गया, क्यूँ कि एक अकेली बिनब्याही, कर्मठ और ईमानदारी से जीना आसान भी कैसे हो सकता है या रहा होगा, जहां चारो ओर भ्रष्टाचार का नंगा नाच होता हो और अराजकता का साम्राज्य फैला हो? उन्हें नौकरी छोड़ देना ही उचित लगा ,तभी वे अपना मान-सम्मान बचा पाईं।
वे नौकरी से त्याग पत्र देकर पटना अपने घर वापस लौट आईं. यहाँ आने पर उन्हें पता चला कि उनके मैके वाले अपने घर को किराये पर दे बनारस Shift हो गए हैं। उनके भाई की नौकरी वहीँ थी। अब वे क्या करें ? भाई के घर जाने का मतलब था, भाई पर बोझ बनना और भाभी की कड़वी बातें सुनना जो उनके आत्म सम्मान को चोट पहुंचाता. यह उन्हें उचित नहीं लगा।
वे एक किराये के घर में Shift हो कर अपने लिए नौकरी की तलाश शुरू की।वे पढ़ी-लिखी तो थीं ही, प्रयास करने पर एक महाविद्द्यालय में प्राध्यापिका की नौकरी मिल गई। सुचारू रुप से व्यवस्थित होने के क्रम में वे अपनी माँ से कई बार बोली कि अपना घर किरायेदार से खाली करा कर उन्हें रहने दिया जाए। एक अकेली को किराए के मकान में रहने में अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा, लेकिन उनके माँ-भाई तैयार नहीं हुए और अंत तक तैयार नहीं हुए। उन्हें लगता है कि मधु दी को देने से मधु दी किसी दुसरे को दे देंगीं।
मधु दी के पिता जी के एक सच्चे मित्र हैं, उच्च पदाधिकारी (I.S.A) श्री अरुण श्रीवास्तव जी। मधु दी अक्सर उनके घर ही आती-जाती रहीं। उन्हें वे चाचा और उनकी पत्नी को चाची पुकारती थीं। चाचा के बच्चे विदेश में बस गए हैं, अत: मधु दी के आने – जाने से चाचा-चाची को भी अच्छा लगता। 2012 के मई में चाची का देहांत हो गया। अभी केवल चाचा हैं। समय बीतता गया। कौन किसका सहारा बना या किसको किसकी ज्यादा जरुरत थी, ये तो किसी तराजू पर तौल कर नहीं बताया जा सकता।
चाचा जब नौकरी से रिटायर्ड हुए तो उन्होंने एक स्कूल खोलने की तैयारी किये और संत-साईं ट्रस्ट की तरफ से स्कूल खुला। उस स्कूल के 2 – 3 ट्रस्टी बनाने पड़े जिसमें से एक मधु दी अपनी उपयोगिता और बुद्धिमानी के वज़ह से बनीं। मधु दी 58- 59 साल की जिन्दगी में ना जाने कितने कठिन दौर से गुज़रीं होंगीं।कितने सुखों से वंचित रहीं।
एक दिन बात-चीत के दौरान वे मुझ से बोली थीं कि मेरे साथ रात गुज़ारने की तमन्ना रखने वाले 20 साल के बच्चे से लेकर 60 साल तक बूढ़े के लोग मिलते हैं। चाहे ट्रेन-बस में साथ सफ़र करने वाला हो या जीवन में मिलने वाले रिश्ते में भाई हो , मामा हो, सखी के पिता हो या हो पति। पति कैसा भी होता तो एक ही होता ना! एक बच्चा गोद लेने का सोचती हूँ लेकिन उसे अकेलापन देने से डरती हूँ। मैं उनसे जब भी मिलती थी (मिलना तो लगभग दो-चार दिन पर हो जाता था, जब वे मित्रा भाभी से मिलने आती थीं उनके घर पर, तो दुआ-सलाम मुझसे भी हो जाता था) तो सोचती थी, मधु दी को गढ़ने वाला कुम्हार अपने चाक जरुर check करता होगा कि मैंने क्या गढ़ दिया !!
कुछ दिनों पहले अपने निवास स्थान में मृत पाई गईं। उनकी मृत्यु मेरे लिए रहस्यमय है। बेटी क्यूँ पराई होती है …. होती रहेगी कब तक ??
अच्छी मार्मिक कहानी। मेरे विचार से मधु जी की त्रासदी का असली कारण समाज की यह मान्यता है कि पति को उम्र, ज्ञान, आदि सभी बातों में पत्नी से बढ़कर होना चाहिए। अगर इस्पात का आग्रह न होता, तो वे किसी साधारण व्यक्ति से विवाह करके सामान्य जीवन जी सकती थीं।
कहानी पड़ कर आँखें नम हो गईं . कैसा समाज है हमारा ? एक औरत को कीं कीं मुसीबतों को सहना पड़ता है , कियों लोग समझ नहीं पाते ?
आभार भाई ….. यही तो मैं भी सोचती हूँ लोग समझ क्यूँ नहीं पाते ….. अगर भाई भतीजा मधु दी से सम्बन्ध रखते तो मधु दी मौत यूँ न हुई होती …..