कविता

हाइकु

कमल पर चंद हाइकु

1

जोगी जलज
जमें वैसा न बनें
जग या पंक

2

निर्सुगंध हो
ज्ञान-बोध का स्तम्भ
पंक में पद्म।

3

पा परिच्छिन्न
नीरजात नीरज
प्रफुल्ल पद्मा

4

जीव का रोला
कलासी खिली वल्ली
पंक में पद्म
=
रोला = घमासान युद्ध
कलासी = दो पत्थर या दो लकड़ी के जोड़ के बीच का स्थान

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “हाइकु

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया हाइकु !

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comments are closed.