कविता

मैं अभिशप्त हूँ

मैंने उससे पूछा

तुम्हारे जीवन में नहीं ,लेकिन

क्या तुम्हारे सपनो में

आ सकता हूँ

उसने कहा -नहीं

तुम्हारे घर के दरवाजे मेरे लिये बंद हैं

मगर क्या मैं

रेल की तरह

तुम्हारे शहर से गुजर सकता हूँ

उसने कहा -नहीं

मेरे नाम और मेरे पते ने कहा –

हम भूलना चाहते हैं

इस शख्स कों ……

क्या अनुमति आपसे मिल जायेगी

उसने कहा -नहीं

यहीं तो इसकी सजा है

इसे न खुद कों भूलना है ..न ..मुझे

क्योकि –

इसने मुझसे प्यार करने का अपराध

मेरी सहमती के बगैर किया है

फिर मैं उसे भूलने के लिये

कभी -समुद्र के किनारे गर्म रेत पर

एक बूंद की तरह लेट गया

कभी -मेरा शरीर काँटों सा बिछ गया

कभी -मेरे पाँव अंगारों कों पार कर आये

कभी -फुटपाथ पर बिखरे खाली दोनों सा

भूखा रह गया

कभी -मृत देह कों ले जाती भीड़ में शामिल हो

चिता तक चला गया………….

अंत में मुझे थका हुआ और पराजित जानकर

सीढियों ने मन्दिर के करीब बिठा लिया

और तब –

बजती हुई घंटियों ने मुझसे पूछा –

आखिर तुम्हें हुआ क्या है

मैंने कहा -मैं जिसे भूलना चाहता हूँ

वही मुझे ज्यादा याद आ रही है

मैं अभिशप्त हूँ

चबूतरे की सारी प्रतिमाओं की आँखों से

एकाएक आंसू बहने लगे

वे नतमस्तक थे

मुझे प्यार करने का दंड मिल चूका था

मेरी व्यथा सुनकर पत्थरो में भी जान आ गयी थी

किशोर कुमार खोरेन्द्र

 

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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