“दु:ख”
सुबह में मैं बहुत खुश था
लिये मन में सपने सुंदर था
अपने घर की ओर जा रहा था
खुशियों का लहर मन में था
तभी अचानक वो आया था
दुखों का लिया पहाड़ था।
सबको बाटना चाहता था।
बाटा सबको थोड़ा -थोड़ा
हिस्सा हमें भी दे रहा था
नहीं लेने का कर रहा था
उन लोगों से गुजारिश
तकाजा नियम का दे रहा था।
नियम का दिखावा कर
आलोक नियम का दिखाकर,
कर दिया सबको अन्दर
यही मेरा दुख भरा समन्दर।
वाह वाह