इतिहास

रामायण कवि वाल्मीकि और वर्तमान वाल्मीकि जाति

भारत में यह धारणा बना दी गई है की रामायण रचियेता ऋषि वाल्मीकि शुद्र दलित थे ,हर साल दलित वाल्मीकियो द्वारा ऋषि वाल्मीकि की याद में ‘ वाल्मीकि दिवस’ मनाया जाता है जिसमें देश के सभी सफाई के कार्य करने दलित( भंगी) इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं ।
ये दलित(भंगी) अपने को ऋषि वाल्मीकि के वंशजो से जोड़ते हैं । पर यदि आज का वाल्मीकि जाति ऋषि वाल्मीकि के वंसज है तो इनसे द्विज इतनी घृणा क्यों करते हैं? क्यों इन्हें अछूत माना जाता है?। यह विचारणीय प्रश्न है ।
क्या सच में ऋषि वाल्मीकि भंगी जाति के ही थे? या यह दलितों को गुमराह करने के लिए है ताकि दलित झूठे अभिमान में जीते रहे और बगावत न कर सके ?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋषि वाल्मीकि ने खुद को जाति का ब्राह्मण ही माना है उन्होंने खुद को प्रचेता का पुत्र कहा है । मनु स्मृति में प्रचेता को ब्राह्मण कहा है ।
अब प्रश्न यह है की कैसे एक ब्राह्मण को अछूत बना दिया गया और लाखो दलित भंगी भाई उसे अपना पूर्वज मान के पूजने लगे? आइये देखें इस षड्यंत्र के पीछे सच क्या है?

प्रसिद्ध विद्वान भगवानदास , एम् ए,एल एल बी ने अपनी पुस्तक ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” में लिखा है की भंगी या चूहड़ा जाति का व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता था । शिक्षा के दरवाजे उसके लिए बंद थे ,केवल इसाई मिशन के स्कूल ही उन्हें शिक्षा देते थे । शिक्षा पा कर भी हिन्दू धर्म में वे अछूत ही रहते थे । नौकरी पाने के लिए उन्हें धर्म परिवर्तन करना पड़ता था ।
इस धर्म परिवर्तन से हिन्दुओ की संख्या कम हो रही थी ,क्यों की कई भंगी जाति के लोग ईसाई के आलावा मुसलामन भी बन रहे थे । इससे सवर्ण लोग व्याकुल हो रहे थे ,उनके काम करने वाले लोग उन्हें छोड़ के जा रहे थे । इस धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए और उन्हें हिन्दू धर्म का अविभाज्य अंग बनाने के लिए आज से 50-60 साल पहले भंगियो के धर्म गुरु लालबेग या बालबांबरिक को वाल्मीकि से अभिन्न बताना शुरू कर दिया ।
हिन्दुओ ने एक नई चाल चली ,उन्होंने सोचा की भंगियो को हिन्दू बनाने के लिए जाति बदलने आदि का मुश्किल तरीका अपनाने की अपेक्षा क्यों न स्वयं उनके गुरु लालबेख /वालाशाह/बाल बांबरिक को ही वाल्मीकि बना के हिन्दू बना लिया जाए। सवर्ण हिन्दुओ ने भोले भाले भंगियो को अपनी गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहने के लिए लालबेख का ही ब्रह्मनीकरण कर दिया और उसे बाल बांबरिक, ‘बालरिख’ आदि शब्दों का सहारा लेके वाल्मीकि बना डाला ।

वाल्मीकि बना देने से पंजाब की चूहड़ा जाति रामायण के आदि कवी वाल्मीकि से अपना रिश्ता जोड़ सकती थी । पिछले 50-60 सालो से यह कोशिश निरंतर जारी है पर हिन्दुओ को वह कड़ी मिल नहीं रही ।
हिन्दुओ किस चाल मेंसभी दलित आ गए हों और वाल्मीकि को अपना गुरु मानते हों ऐसा नहीं है । उत्तर प्रदेश और बिहार के हेला,डोम, डमार, भूई,भाली, बंसफोड़ धानुक, धानुक,मेहतर
रजिस्थान का लालबेगि बंगाल का हाड़ी आदि आदि कवि वाल्मीकि को अपना गुरु नहीं मानता और न ही वाल्मीकि जयंती मनाता है ।
केवल उत्तर प्रदेश का भंगी जो कल तक लालबेगी या बाल बांबरिक धर्म का अनुयायी था वाही वाल्मीकि जयंती पर जुलुस निकलता है।

इलाहाबाद में वाल्मीकि तहरीक केंद्र है , लेकिन वंहा 1942 में पहली बार भंगियो ने वाल्मीकि जयंती मनाई थी दिल्ली में यह जयंती पहली बार 1949 में मनाई गई थी ।
जब तक भंगी अपनी ही बरदारी और मुहल्लों में घिरा रहेगा तब तक वह वाल्मीकि जयंती मनाता रहेगा परन्तु जैसे ही वह शिक्षा ग्रहण कर के दुसरे शहर या मोहल्ले में जायेगा वह हीनता के कारण वाल्मीकि जयंती नहीं मना पायेगा । वैसे भी यदि वह शिक्षित हो जाता है तो उसे असलियत पता चलती है तब वह इन सब पर विश्वास करना छोड़ देता है । वह इसे एक भूल समझता है और बाहर निकल के इसे एक दुस्वप्न की तरह भुला देना चाहता है।

– पुस्तक, वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति,पेज 29- 46)

यह ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” नाम की पुस्तक श्री भगवानदास जी ने सन 1973में लिखी थी। उनकी और लिखी पुस्तके

1- मैं भंगी हूँ
2- महर्षि वाल्मीक
3- क्या महर्षि वाल्मीकि अछूत थे

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “रामायण कवि वाल्मीकि और वर्तमान वाल्मीकि जाति

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छा लेख .

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